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________________ प्रत्येक उद्देशक १–१ आयंबिल करके पढे, पूर्व सेवा के ५ उपवास, ३ चूलिका सहित पंच नमस्कार पढने के लिए ८ आयंबिल और उत्तर सेवा का १ अट्ठम (३ उपवास) करने से १६ दिनों में पंच मंगल महा श्रुत स्कन्ध की आराधना पूर्ण होती है । इर्यापथिकी आदि के उपधान 'भगवान् महावीर ने कहा-गौतम ! पंवमंगल को स्थिर-परिचित करके फिर इरियावही पढना चाहिए।' गौतम ने प्रश्न किया--- "से भयवं कयराए विहीए तमिरियावहियमहीए ? गोयमा! जहाणं पंचमंगलमहासुयक्खधं, से भयवं इरियावहिय महिज्जित्ता णं तो किमहिज्जे ? गोयमा सक्कथवाइयं चेइयवंदणविहाण, णवरं सक्कथयं एगहम-बत्तीसाए आयंबिलेहि, अरहंतत्थग (व) ण एगेण चउत्थेण तिहिं आयंबिलेहिं, चउवीसत्थयं एगेण छहण एगेण य चउत्थेण पणुवीसाए आयंबिलेहिं, णाणत्थयं एगेणं चउत्थेण पंचहिं आयंबिलेहिं ।" . अर्थात्-'हे भगवन् ! किस विधि से ईर्यापथिकी को पढा जाय ?' भगवान ने फरमाया 'गौतम ! जो पंचमंगल महा श्रुतस्कन्ध शक्र स्तवादिक चैत्यवंदन के सूत्र पढने की विधि कही है, उसी विधि से ईर्यापथिकी पढना चाहिए'। भगवन् ! ईर्या, पथिकी पढने के बाद आगे क्या पढ़ें ? भगवान ने कहा-'गौतम ! शक्र स्तवादि चैत्यवंदन विधान पढे, विशेष इतना ही है कि शक स्तव एक अष्टम और बत्तीस आयंबिलों से पढा जाता है, अरिहंत चैत्यस्तव एक चतुर्थ भक्त और तीन आयंबिलों से पढा जाता है, चतुर्विंशति स्तव एक षष्ठ भक्त, एक चतुर्थ भक्त और पच्चीस आयंबिलों से पढा जाता है, और ज्ञानस्तव एक चतुर्थ भक्त और पांच आयंबिलों से पढा जाता है । पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध और प्रतिक्रमण श्रुतस्कन्ध के उपधान समानविधिक होने का सूत्रकार लिखते हैं, पंचमंगल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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