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________________ निशीथाध्ययन का विषय दिग्दशन छेद सूत्रों का कलेवर बहुत छोटा होता है, परन्तु इनका प्रतिपाद्य विषय इतना गहरा होता है कि नियुक्ति, भाष्य, चूणि, टीकाकार उसके स्पष्टीकरण में हजारों श्लोक लिखते हैं तभी ग्रन्थ का विषय विशद होता है, उदाहरण के रूप में "कल्पाध्ययन" एक छोटा अध्ययन है, इसके मात्र छ: उद्देशक हैं और २१२ सूत्र, फिर भी इसके स्पष्टीकरण में लघुभाष्यकार को हजार गाथा परिमित भाष्य, सामान्य चूर्णिकार को १४ हजार श्लोक परिमित चूणि और बृहद् भाष्यकार को १३ हजार गाथापरिमित बृहद्भाष्य एकन्दर कल्पसूत्र मूल, दो भाष्य, दो चूणियाँ मिलकर ४५४७३ श्लोकात्मक प्राकृत साहित्य और आचार्य मलयगिरि और क्षेमकीति को ४२००० श्लोकपरिमित संस्कृतटीका लिखनी पड़ी। व्यवहाराध्ययन सूत्र में २७१ सूत्र और मूल का श्लोक परिमाण ३७३ श्लोक का है, इस पर छः हजार परिमित भाष्य, १०३६१ श्लोकपरिमित चूर्णि और ३३००० श्लोक परिमाण वृत्ति, कुल ४६७३४ श्लोक परिमित साहित्य लिखा गया तब इसका स्पष्टीकरण हुआ। निशीथाध्ययन के मूल सूत्र १४२६, मूल का श्लोकपरिमाण ८०० के लगभग, भाष्य ७४०० और चूणि २८०००, एकन्दर ३६२१५ श्लोकों में निशीथ अध्ययन का विवरण किया गया है । उपर्युक्त व्याख्या ग्रन्थों का परिमाण पढ़ने के बाद इस विषय में कहने की आवश्यकता नहीं रहती कि छेदसूत्र कितने गहन और गूढार्थ हैं, इनमें जैन श्रमण-श्रमणियों के जीवनभर के कर्तव्यों का दिग्दर्शन कराया है और कर्तव्यच्युत होने पर शुद्धयर्थ दण्डविधान किया गया है। (१) प्रकल्पाध्ययन के प्रथम उद्देशक में कुल ५८ सूत्र हैं, इनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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