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________________ क्षेत्र विपर्यास-जैसे दो नामवाल क्षेत्र के सम्बन्ध में आनन्दपुर पूछने पर उसे अर्कस्थली कहे और अर्कस्थली है ? यह पूछने पर उसे आनन्दपुर कहे | काल विपर्यास - अनागाढ बीमारी में आगाढ बीमारी कहे और आगाढ में अनागाढ, अथवा अकाल में उपधि ग्रहण करे और काल में ग्रहण न करे । भाव विपर्यास - भाव विपर्यास में अनिर्वृत आत्मा को निर्वृत बताये और दूसरे को अनिवृत कहे और स्वयं को निर्वृत कहे, जो पदार्थ जिस प्रकार नियत हो उसको दूसरे प्रकार का माने, अथवा कहे वा करे यह भी भाव विपर्यास है । जैसे कोई साधु अयोध्या नगर से महमान बनकर आया और स्थानिक साधु ने पूछा- तुम अयोध्या से आते हो ? आगन्तुक कहता है नहीं, मैं साकेत से आया हूँ, स्थानिक साधु, अयोध्या का पर्याय ही साकेत है यह नहीं जानता, इसलिए वह अयोध्या के पूछने पर साकेत एवं साकेत के पूछने पर अयोध्या बताता है, अथवा तुम यहां के रहने वाले हो, यह पूछने पर अपने को अवास्तव्य बताता है और यहां के रहने वाले नहीं हो, यह पूछने पर वह अपने को वहां का रहने वाला बतावे, क्या तुम मालवदेश के जन्मे हुए हो, यह पूछने पर वह अपने को मालवा अथवा अन्य देश का जन्मा हुआ बताता है, यह सब वचन विपर्यास के दृष्टान्त है । इन वचन प्रयोगों के आधार से निशीथ भाष्यकार को मालव और मगध देश से भिन्न देश का मान लेना तर्क हीन है । लेखक को कोई न कोई तो भाषा विपर्यास सूचक दृष्टान्त देना ही था, मालव और मगध का नाम लिया उसी प्रकार महाराष्ट्र और सौराष्ट्र के नाम लिये होते तो भी भाष्यकार महाराष्ट्र अथवा सौराष्ट्र में नहीं थे यह कहने में कोई भी बाधक नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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