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________________ ५२ : निबन्ध-निचय परम्परा में प्रसिद्ध हैं श्वेताम्बरों के प्रामाणिक सूत्र “व्याख्या प्रज्ञप्ति(भगवती सूत्र) के पन्द्रहवें शतक में ये नाम पाते हैं, वहाँ पर ये वीर किस के भक्त हैं, यह तो नहीं लिखा। केवल इन्हें यक्ष के नाम से निर्दिष्ट किया है, परन्तु कपिल तथा पिंगल नाम श्वेताम्बरीय साहित्य में "सिरि सिरिवाल कहा" के अतिरिक्त किसी ग्रन्थ में हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुए, दिगम्बर जैन साहित्य में ये नाम पाये हों तो असम्भव नहीं है।। ११. "ॐ ह्रीं श्रीं अप्रसिद्ध सिद्ध चक्राधिष्ठायकाय स्वाहा' इस उल्लेख से यह प्रतीत होता है कि विमलेश्वर देव के अतिरिक्त और भी कोई सिद्ध वक्र का अधिष्ठायक है, पर उसका नाम यन्त्र लेखक को ज्ञात नहीं हझा, परन्तु लेखक की यह भ्रान्ति मात्र है। "सिद्धचक्र" के साथ विमलेश्वर देव और चक्रेश्वरी देवी के सिवाय और किसी दे -देवी का अधिष्ठायक के रूप में सान्निध्य नहीं, यों भले ही अच्छी चीज होने से कोई भी देव उस तरफ अाकृष्ट हो सकता है, तीर्थङ्कर महाराज के समवसरण में करोड़ों देव पाते हैं और उनमें से अधिकांश तीर्थङ्कर के अतिशय से तथा उनकी पुण्य प्रकृति से आकृष्ट होकर भक्त से बन जाते हैं। फिर भी वे सभी उन तीर्थङ्करों के परम भक्त हैं, यह नहीं कह सकते। यही कारण है कि प्रत्येक तीर्थङ्कर के शासन-भक्त यक्ष यक्षिणी का एक एक ही युगल माना गया है, पार्श्वनाथ का धरेणन्द्र नागराज परम भक्त होने पर भी श्वेताम्बर सम्प्रदाय में उसे पार्श्वनाथ का यक्ष अथवा अधिष्ठायक नहीं माना गया, इसी प्रकार आबू पर्वत से लेकर सांचोर तक के महावीर के चैत्यों की परम सतर्कता से "ब्रह्मशान्ति" यक्ष रक्षा करता था, फिर भी उसे पूर्वाचार्यों में महावीर के शासन देव की उपाधि नहीं दी, इसी तरह विमलेश्वर के अतिरिक्त 'सिद्धचक्र" के अप्रसिद्ध अधिष्ठायक मानने की “सिद्धचक्र मण्डल" निर्माता की कल्पना मात्र है, जिसका प्रयोजन मण्डल के वलय का एक कोठा पूरा करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। प्रस्तुत पूजन विधि के अन्त में प्राकृत भाषामय ३५ गाथाओं का "सिद्धचक्र महिमा" गभित एक स्तव दिया है, जिसके प्राम्भिक भाग में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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