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________________ कर्ता : कलंक देव : ३१ : कलंक - ग्रन्थत्रय लघीयस्त्रय ग्रन्थ में प्रथम प्रमाण- प्रवेश, नय-प्रवेश तथा प्रवचनप्रवेश आदि प्रकरण हैं । नय-प्रवेश की ३३वीं कारिका के उपक्रम में पुरुषाद्वैतवाद का उल्लेख करके पुरुष को निस्तरंग तत्त्व और जीवादि पदार्थों को उपप्लव कहा गया है । वास्तव में यह हकीकत वेदान्तवाद को है । आगे कारिका ३८त्रीं में स्पष्ट रूप से ब्रह्मवाद का निर्देश मिलता है "संग्रहः सर्वभेदैक्य-मभिप्रति सदात्मना । ब्रह्मवादस्तदाभासः स्वार्थभेदनिराकृतेः || ३८ ||" इत्यादि । श्रागे प्रवचन - प्रवेश की ६वीं कारिका में भी “सदभेदात्समस्तैक्य - संग्रहात् संग्रहो नयः । दुर्नयो ब्रह्मवादः स्यात्, तत्स्वरूपानवाप्तितः ॥३६॥' ब्रह्मवाद को दुर्नय कहा गया है । Jain Education International कलंक देव के उपर्युक्त निरूपरणों से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि इनका लघीयस्त्रय ग्रन्थ शंकराचार्य का ब्रह्मवाद प्रचलित होने के बाद निर्मित हुआ है । अन्य विद्वानों का यह मन्तव्य है कि लघीयस्त्रय अकलंक देव का प्रारम्भिक ग्रन्थ है । पर हम इस मन्तव्य से सहमत नहीं हैं । हमारी राय में यह लघीयस्त्रय ग्रन्थ अकलंकदेव ने पिछली अवस्था में इस विचार से रचा है कि स्यादवाद के अभ्यासी विद्यार्थी इन लघु ग्रन्थों में प्रवेश कर स्याद्वाद के आकर ग्रन्थों में सुगमता से प्रवेश कर सकें । फ्र फ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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