SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ : निबन्ध-निचय बताओ और साहाय्य करो कि यह स्तूप सम्बन्धी झगड़ा तुरन्त मिटे और स्तूप जैन सम्प्रदाय का प्रमाणित हो। वनदेवता ने कहा--तपस्वीजी महाराज ! आज मेरी सेवा की आवश्यकता हुई न ? तपस्वी बोले-"अवश्य यह कार्य तो तुम्हारी सहानुभूति से ही सिद्ध हो सकेगा।" देवी ने कहा-आप अपने संघ को सूचित करें कि वह प्रायन्दा राजसभा में यह प्रस्ताव उपस्थित करे-“यदि स्तूप पर स्वयं श्वेत ध्वजा फरकने लगेगी तो स्तूप जैनों का समझा जायगा और लाल ध्वजा फरकने पर बौद्धों का।" क्षपक ने मथुरा जैन संघ के नेताओं को अपने पास बुलाकर वनदेवतोक्त प्रस्ताव की सूचना की। संघनायकों ने न्यायाधिकरण के सामने वैसा ही प्रस्ताव उपस्थित किया। राजा तथा न्यायाधिकारियों को प्रस्ताव पसंद आया और बौद्धनेताओं से उन्होंने इस विषय में पूछा तो बौद्धों ने भी प्रस्ताव को मंजूर किया। राजा ने स्तूप के चारों ओर रक्षक नियुक्त कर दिये । कोई भी व्यक्ति स्तूप के निकट तक न जाए, इसका पूरा बन्दोवस्त किया, इस व्यवस्था और प्रस्ताव से नगर भर में एक प्रकार का कौतुकमय अद्भुत रस फैल गया। दोनों सम्प्रदायों के भक्त जन अपने-अपने इष्टदेव का स्मरण कर रहे थे, तब निरपेक्ष नगरजन कब रात बीते और स्तूप पर फहराती हई ध्वजा देखें, इस चिन्ता से भगवान् भास्कर से जल्दी उदित होने की प्रार्थनाएं कर रहे थे। सूर्योदय होने के पूर्व ही मथुरा के नागरिक हजारों की संख्या में स्तूप के इर्द-गिर्द स्तूप की ध्वजा देखने के लिए एकत्रित हो गये । सूर्य के पहले ही उसके सारथि ने स्तूप के शिखर, दंड और ध्वजा पर प्रकाश फेंका, जनता को अरुण प्रकाश में सफेद वस्त्र सा दिखाई दिया । जैन जनता के हृदय में प्राशा की तरंगें बहने लगीं। इसके विपरीत बौद्ध धर्मियों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy