SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निबन्ध-निचय : १७७ (५) अहिच्छत्रा - पार्श्वनाथ : प्राचारांगनियुक्ति-सूचित “पार्श्व" अहिच्छत्रा नगरी स्थित पार्श्वनाथ हैं। भगवान् पार्श्वनाथ प्रवजित होकर तपस्या करते हुए एक समय कुरुजांगल देश में पधारे। वहां शंखावती नगरी के समीपवर्ती एक निर्जन स्थान में आप ध्यान-निमग्न खड़े थे, तब उनके पूर्व भव के विरोधी "कमठ' नामक असुर ने आकाश से घनघोर जल बरसाना शुरु किया। बड़े जोरों की वृष्टि हो रही थी। कमठ की इच्छा यह थी कि पार्श्वनाथ को जलमग्न करके इनका ध्यान भंग किया जाय । ठीक उसी समय "धरणेन्द्र नागराज" भगवान् को वन्दन करने आया। उसने भगवान् पर मुशलधार वृष्टि होती देखी। धरणेन्द्र ने भगवान् के ऊपर "फरण-छत्र" किया और इस अकाल वृष्टि करने वाले कमठ का पता लगाया। यही नहीं, उसे ऐसे जोरों से धमकाया कि तुरन्त उसने अपने दुष्कृत्य को बन्द किया और भगवान् पार्श्वनाथ के चरणों में शिर नमाकर धरमेन्द्र से माफी मांगी। जलोपद्रव के शान्त हो जाने के बाद नागराज धरणेन्द्र ने अपनी दिव्य शक्ति के प्रदर्शन द्वारा भगवान् की बहुत महिमा की। उस स्थान पर कालान्तर में भक्त लोगों ने एक बड़ा जिन-प्रासाद बनवाकर उसमें पार्श्वनाथ की नागफणछत्रालंकृत प्रतिमा प्रतिष्ठित की। जिस नगरी के समीप उपर्युक्त घटना घटी थी वह नगरी भी “अहिच्छत्रा नगरी' इस नाम से प्रसिद्ध हो गई। अहिच्छत्रा विषयक विशेष वर्णन सूत्रों में उपलब्ध नहीं होता, परन्तु जिनप्रभ सूरि ने “अहिच्छत्रा नगरी कल्प' में इस तीर्थ के सम्बन्ध में कुछ विशेष बातें कही हैं, जिनमें से कुछ नीचे दी जाती हैं _ 'अहिच्छत्रा पार्श्व जिनचैत्य के पूर्व दिशाभाग में सात मधुर जल से भरे कुण्ड अब भी विद्यमान हैं। उन कुण्डों के जल में स्नान करने वाली मृतवत्सा स्त्रियों की प्रजा स्थिर' रहती है। उन कुण्डों की मिट्टी से धातुवादी लोग सुवर्णसिद्धि होना बताते हैं ।' (१) जीवित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy