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________________ निबन्ध-निचय १६. (११) प्रश्न-पद्धति : ___ "प्रश्न-पद्धति" नामक एक छोटा ग्रन्थ मुद्रित होकर कुछ वर्षों पहले प्रकाशित हुआ है। इसका कर्ता "हरिश्चन्द्र गणी” को टाइटल पेज पर बताया है। ग्रन्थ के भीतर लेखक अपने आपको “नवाङ्ग वृत्तिकार श्री अभयदेव सूरिजी का शिष्य बताता है।" "भगवती" आदि सूत्रों के नाम लेकर वह लिखता है-“मेरे गुरु भगवती सूत्र की टीका में यह कहते हैं" एक जगह ही नहीं अनेक स्थानों पर इन्होंने अपने को अभयदेव सूरि का शिष्य होने की सूचना की है, परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इस पद्धति को पढ़ने पर हमें निश्चय हा कि इस पद्धति का लेखक विक्रम की १५वीं शती से पहले का व्यक्ति नहीं है। अमुक व्यक्तियों के नामोल्लेख किये हैं। उनके नामों के साथ जो गोत्र लिखे हैं, वे १५वीं सदी के पूर्व के नहीं हो सकते। लेखक किस गच्छ का है, यह निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता। फिर भी भगवान् महावीर के गर्भापहार के सम्बन्ध में अपना जो अभिप्राय व्यक्त किया है, उससे इतना निश्चित कहा जा सकता है कि "प्रश्नपद्धतिकार खरतरगच्छीय" नहीं था। “पद्धति' में अनेक प्रश्नों के उत्तर "अनागमिक' होने से जाना जाता है कि लेखक योग्य विद्वान् नहीं था और न "प्रश्न-पद्धति” ही प्रामाणिक ग्रन्थ कहा जा सकता है। इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने वालों ने कोई उपयोगी कार्य नहीं किया है, ऐसी हमारी मान्यता है। (१२) पूजा-प्रकीर्णक (पूजा पइन्नय) : एक शहर के पुस्तक भण्डार में रहा हुआ "पूया पइन्नय' नामक प्राकृत गाथाबद्ध प्रकरण हमने देखा। उसमें लिखा गया है कि संवत् १६२ के ज्येष्ठ शुक्ला ५ वार शुक्र को राजा चन्द्रगुप्त ने प्रतिष्ठा करवाई। इस जाली लेख से हमारा कुतूहल बढ़ा और प्रकरण की सब गाथाएँ पढ़ लीं। "प्रकीर्णक" की प्राकृत भाषा क्या है, प्राकृत पदों को खींचतान कर गाथाओं का रूप दिया है। महाकवि बाणभट्ट की "हठादाकृष्टानां कतिपयपदानां रचयिता" इस उक्ति को चरितार्थ किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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