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________________ ६६ : मिबन्ध-निचय लिखी हुई बातों का सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं है, केवल मूर्तिपूजा के विरोधियों को नीचा दिखाने की नियत से ही यह अध्ययन गढ़ा गया है।। (६) प्रागम-अष्टोत्तरी : यह एक सौ आठ संग्रहीत गाथाओं का सन्दर्भ है। संग्रहकार ने भिन्न-भिन्न ग्रन्थों की गाथाओं द्वारा अपने मन्तव्य का समर्थन किया है और इसका कर्ता नवांग वृत्तिकार श्री अभयदेव सूरिजी को बताया है। वास्तव में इस संग्रह के कर्ता कोई अज्ञात विद्वान् हैं। अपने मन्तव्य को प्रामाणिक ठहराने के लिए उसके साथ अन्य प्रामाणिक आचार्य का नाम जोड़ देना ठीक नहीं। (७) प्रश्न-व्याकरण : जैन-सम्प्रदायमान्य वर्तमान एकादशांग सूत्रों में दशवां नम्बर "प्रश्न-व्याकरण" का हैं । "प्रश्न-व्याकरण” में “समवायांग सूत्र'' के कथनानुसार अष्टोत्तर शत पृष्ट व्याकरण, अष्टोत्तर शत अपृष्ट व्याकरण और अष्टोतर शत पृष्टापृष्ट व्याकरण पूर्वकाल में वरिणत थे। इसके अतिरिक्त दर्पण (अद्दाग) प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, असि प्रश्न, मरिण प्रश्न आदि अनेक प्रश्न विषयक ज्ञान और उनके अधिष्ठायक देवताओं का निरूपण था। उनके द्वारा त्रिकालवर्ती बातों का पता लगाया जाता था, परन्तु ये सब भूतकाल की बातें हैं । आज के "प्रश्न-व्याकरण" में पांच आस्रवों और पांच संवरों का निरूपण है। इसकी भाषा भी परिमार्जित और काव्यशैली की है। इससे ज्ञात होता है कि "प्रश्न-व्याकरण" का यह परिवर्तन बहुत प्राचीन है। सम्भवतः यह परिवर्तन अन्तिम पुस्तकारूढ़ होने के पहले का है।" प्राचीन चूर्णिकार इसके मूल विषय का निरूपण करने के बाद कहते हैं प्रश्न-व्याकरण में पहले इस प्रकार का विषय था, परन्तु काल तथा मनुष्य स्वभाव का विचार कर पूर्वाचार्यों ने उक्त विषय को हटाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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