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________________ त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा । Pr- rrrrrn. किस को ?-सरासर झूठ है, कौन कह सकता है मूल नायक जी के ऊपर लेख नहीं था ? बराबर था, सारा जालोर का जैनसंघ जानता और कबूल करता है कि इसपर पुराणा लेख था और राजेन्द्रमूरिजी ने ' जमाल खां' नामक मुसलमान शिलावट के पास घिसवाया। इतना ही नहीं, उस शिलावट का बेटा-जिसका नाम 'करिम खां' है, और जो आज कल गांव ' अगवरी के जैन मंदिर में काम करता है-वह भी कबूल करता है कि 'मेरे पिताजी ने कांकरियावास के पार्श्वनाथ जी का पुराना लेख घिसा और नया खोदा था, क्यों ले वक जी ! जैनभिक्षु जी का कथन झूठा ठहरा कि आपका ?। फिर लेखक तेहरीर करते हैं कि " इस प्रतिमा का उत्थान श्रीजालोर गढका रहीस राणावतजी के योधपुर विगैरे के काम के करने वाला कामेती ( कामदार ) ऊपर कोटा कानुगा नवलमलजी ने-मकराणा जयपुर या सादरी से लाई हुईप्रतिमा तीन चार वर्ष तो खुद अपने घर में भूहरा में रक्खी पीछे उपाश्रय के आले में लाके धरी थी, अंजन शलाका विना की नवीन प्रतिमा के उपर प्राचीन ( जूनी ) अर्वाचीन ( नवीन ) ओलखान के लिये 'पूर्वाचार्यों की परंपरा गत नाम खुदवाते आये हैं जिस अनुरोध ( मिशाल ) से राजेन्द्र रिजी ने संवत् मासादि नाम खुदवाया; परंतु न केवल अपना नाम रखने की अभिलाषा से नाम खुदवाया है:इस की साबुती का लेख प्रथम तो कानुगा नवलमलजी का लेख ऊपर लिख चूके हैं " लेखको का यह कथन कि 'उस प्रतिमा की अंजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003120
Book TitleTristutik Mat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherLakshmichandra Amichandra Porwal Gudabalotara
Publication Year1917
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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