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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण स्फुरित होती कि बार-बार बीमार होने की इच्छा जाग जाती। बीमारी के क्षणों में गुरुदेव इतना वात्सल्य उंडेलते कि उसमें सराबोर होकर मैं सब कुछ भूल जाता। उस समय आप मुझे अपने निकट बुलाते, नब्ज देखते, स्थिति की जानकारी करते, औषधि एवं पथ्य के बारे में निर्देश देते और कई बार दिन में भी अपने पास ही सुलाते। कभी दूसरे कमरे में होता तो बार-बार साधुओं को भेजकर स्वास्थ्य के बारे में पूछते । कहां एक बाल मुनि और कहां संघ के शिखर पुरुष आचार्य ! कहां जुखाम, बुखार जैसी साधारण घटनाएं और कहां पूरे धर्मसंघ का प्रशासन । पर गुरुदेव का वह अमृत-सा मीठा वात्सल्य एक बार तो रोग जनित पीड़ा का नाम-निशान ही मिटा देता। एक बार मुझे ज्वर हो गया। ज्वर के कारण रात को बेचैनी बढ़ी, मैं जितना बेचैन था, गुरुदेव की बेचैनी उससे भी अधिक थी । उस रात आप नींद नहीं ले सके । आपने मेरा हाल चाल जानने के लिए कई बार साधुओं को मेरे पास भेजा । गुरुदेव के इस अनुग्रह से साधु-साध्वियों पर अतिरिक्त प्रभाव हुआ। इस प्रसंग को मैं जब भी याद करता हूं, अभिभूत हुए बिना नहीं रहता।” जीवनी जीवनी वह गद्यविधा है जिसमें लेखक किसी अन्य व्यक्ति का वस्तुनिष्ठ जीवन वृत्त प्रस्तुत करता है। उसमें किसी महान व्यक्ति की जीवन घटनाओं का उल्लेख होता है। पाश्चात्य विद्वान लिटन स्ट्रेची ने जीवनी लेखन की कला को सबसे सुकोमल एवं सहानुभूतिपूर्ण कहा है। इस विधा का समाजनिर्माण में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि एक महापुरुष की बिखरी हुई प्रेरक घटनाओं को इसमें एकसूत्रता प्रदान की जाती है। इस विधा में कोरा तथ्य निरूपण या कोरी कल्पना नहीं होती बल्कि किसी व्यक्ति का आंतरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व उजागर किया जाता है। आचार्य तुलसी ने इस विधा में तीन चार ग्रन्थ लिखे हैं । 'भगवान् महावीर', 'प्रज्ञापुरुष जयाचार्य' 'महामनस्वी कालूगणी का जीवनवृत्त' आदि पुस्तकें जीवनी साहित्य के अन्तर्गत रखी जा सकती हैं। इनमें क्रमशः भगवान महावीर, तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जीतमलजी तथा अष्टमाचार्य कालूगणी के व्यक्तित्व को सजीव अभिव्यक्ति दी है। संस्मरणात्मक जीवन लेखन से ये जीवनी ग्रन्थ बहुत रोचक एवं जनसामान्य के लिए हृदयग्राह्य बन गए हैं। भाषा की सरलता एवं वर्णन क्षमता की उच्चता इन जीवनी ग्रन्थों में सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रही है। साथ ही व्यक्ति के विशेष विचारों एवं सिद्धान्तों का समावेश करने से ये वैचारिक दष्टि से भी महत्वपूर्ण हो गये हैं। १. विज्ञप्ति संख्या ११४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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