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________________ २४ आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण जैसे 'प्रवचन डायरी' के अनेक प्रवचन 'नैतिक संजीवन' में शीर्षक परिवर्तन के साथ प्रस्तुत हैं । कहीं-कहीं एक ही शीर्षक भिन्न-भिन्न सामग्री के साथ भी आया है । जैसे "अहिंसा" तथा "अक्षय तृतीया,' आदि शीर्षक अनेक बार पुनरुक्त हुए हैं, पर सामग्री भिन्न है । कुछ शीर्षकों ने सहज ही सूक्ति वाक्यों का रूप भी धारण कर लिया है । जैसे : १. जो चोटों को नहीं सह सकता, वह प्रतिमा नहीं बन सकता । २. जहां विरोध है, वहां प्रगति है । ३. सतीप्रथा आत्महत्या है । ४. युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है । अनेक शीर्षक लोकोक्ति, कहावत एवं विशिष्ट घोषों के साथ जुड़े हुए भी हैं: १. सबहु सयाने एकमत २. पराधीन सपनेहुं सुख नाही ३. जितनी सादगी : उतना सुख ४. बीति ताहि विसारि दे ५ . निंदक नियरे राखिए । अनेक शीर्षक आगमसूक्त तथा विशिष्ट धर्मग्रंथों के प्रेरक वाक्यों से संबंधित हैं । जैसे :- १. णो हीणे णो अइरिते, २. तमसो मा ज्योतिर्गमय ३. पढमं णाणं तओ दया ४. जो एगं जाणई सो सव्वं जाणइ ॥ कुछ शीर्षक अपने भीतर रहस्य एवं कुतूहल को समेटे हुए हैं, जिनको पढ़ते ही मन कोतूहल और उत्सुकता से भर जाता है १. जो सब कुछ सह लेता है २. ऐसी प्यास, जो पानी से न बुझे ३. जब सत्य को झुठलाया जाता है, ४. जहां उत्तराधिकार लिया नहीं, दिया जाता है । अनेक शीर्षक साहित्यिक एवं बौद्धिक हैं । साथ ही आनुप्रासिक एवं पमिक छटा से संपृक्त हैं : १. समस्या के बीज : हिंसा की मिट्टी २. निज पर शासन : फिर अनुशासन ३. संसद खड़ी है जनता के सामने ४. पूजा पाठ कितना सार्थक : कितना निरर्थक | कुछ प्रवचनों के शीर्षक वर्ग विशेष को संबोधित जैसे -- १. महिलाओं से, २. व्यापारियों से, (युवकों से ) शांतिवादी राष्ट्रों से, ४. विद्यार्थियों से । अनेक शीर्षक औपदेशिक हैं, जो वर्ग विशेष को उद्बोधन देते हुए प्रतीत होते हैं :: :-- १. युवापीढ़ी स्वस्थ परम्पराएं कायम करे २. महिलाएं स्वयं जागें Jain Education International For Private & Personal Use Only करते हुए भी हैं ३. कार्यकर्त्ताओं से, www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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