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________________ २० आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन किसी विशेष निजीपन, सौष्ठव, सजीवता, रोचकता तथा अपेक्षित संगति एवं संबद्धता से किया जाता है।" इस विधा में प्रतिभा निर्दिष्ट रूप से विषय के साथ बंधकर अपने विचार एवं भाव प्रकट करती है अतः विशेष रूप से बंधी हुई गद्य रचना निबंध के रूप में जानी जाती है। परन्तु पाश्चात्य विद्वान् जानसन के विचार इससे भिन्न हैं। वे कहते हैं-"मुक्त मन की मौज, अनियमित, अपक्व और अव्यवस्थित रचना निबंध है । इसी प्रकार केबल ने भी इसे सस्ती एवं हल्की रचना के रूप में स्वीकार किया है । किन्तु ये विचार सर्वमान्य नहीं हैं क्योंकि निबंध को गद्य की कसौटी माना गया है। प्रसिद्ध साहित्यकार विजयेन्द्र स्नातक का अनुभव है कि भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंध में ही सबसे अधिक संभव है।' आचार्यश्री तुलसी के लगभग सभी निबंधों के विचार सुसंबद्ध तथा प्रभावकता के साथ प्रस्तुत हुए हैं। निबंध में लेखक के व्यक्तित्व का वैशिष्ट्य उजागर होता है अतः उसमें आत्माभिव्यंजना आवश्यक है। जीवन की अवहेलना का दूसरा नाम निबंधकार की मृत्यु है। आचार्य तुलसी के प्रायः सभी निबंध जीवन्त एवं प्रेरक हैं इसी कारण उनमें भावों को तरंगित कर व्यक्तित्वरूपान्तरण की क्षमता उत्पन्न हो गई है । उनके निबंध एक नई सोच के साथ प्रस्तुत है अत: आदमी के भीतर एक नया आदमी पैदा करने की उनमें क्षमता है। उनके निबंध मौलिक विचारों, नवीन निष्कर्षों एवं सूक्ष्म तार्किकता से संवलित हैं अतः वे पाठक के हृदय को गुदगुदाते हैं, आंदोलित करते हैं। अधिकांश निबंधों में सर्वेक्षण की सूक्ष्मता और विश्लेषण की गंभीरता के गुण समाविष्ट हैं। इन निबंधों में गंभीरता के साथ सरसना, प्राचीनता के साथ नवीनता एवं विज्ञान के साथ अध्यात्म का भी अद्भुत समावेश हुआ है। मानव मन की मनोवृत्तियाँ एवं सामाजिक बुराइयों का विश्लेषण बहुत मनोवैज्ञानिक ढंग से उनके निबंधों में उजागर है। आश्चर्य होता है कि वे अपने निबंधों में एक साथ मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री, धार्मिक नेता, अर्थशास्त्री और इनसे ऊपर साहित्यकार के रूप में समान रूप से प्रतिबिम्बित हो गए हैं। इन सबसे ऊपर उनके निबंधों का यह वैशिष्ट्य है कि प्राय: निबंधों का प्रारम्भ इतनी रोचक शैली में है कि उसे पढ़ने वालों की उत्सुकता बढ़ती जाती है और पाठक उसे पूरा पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पाता। वे पाठकों से उदासीन नहीं हैं। अपने दिल की बात पाठक के दिल तक पहुंचकर करते हैं १. समीक्षात्मक निबंध पृ० ३२ २. आधुनिक निबंध पृ० ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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