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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण लेख भावी जीवन की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि ५० साल पूर्व का साहित्य भी उतना ही प्रासंगिक एवं मननीय है जितना वर्तमान का। निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि आचार्य तुलसी ने विनाश के स्थान पर निर्माण, विषमता के स्थान पर समता, अव्यवस्था के स्थान पर व्यवस्था, अनक्य के स्थान पर ऐक्य, घृणा के स्थान पर प्रेम तथा भौतिकता के स्थान पर अध्यात्म के पुनरुत्थान की चर्चा की है। अत: उनके साहित्य को हर युग के लिए प्रेरणापुंज कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। साहित्य के भेद काल की दृष्टि से साहित्य के दो भेद किए जा सकते हैं-सामयिक और शाश्वत । सामयिक साहित्य में वार्तमानिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा धार्मिक आदि अनेक युगीन समस्याओं का चिन्तन होता है पर शाश्वत साहित्य में जीवन की मूल वृत्तियों तथा शाश्वत मूल्यों का विवेचन होता है, जो कालिक होते हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने विषय की दृष्टि से साहित्य के तीन भेद किये हैं' : १. सूचनात्मक साहित्य २. विवेचनात्मक साहित्य ३. रचनात्मक साहित्य । १. कुछ पुस्तकें हमारी जानकारी बढ़ाती हैं । उनको पढ़ने से हमें अनेक नई सूचनाए मिलती हैं। लेकिन ऐसे साहित्य से व्यक्ति की बौद्धिक चेतना उत्तेजित नहीं होती। २. विवेचनात्मक साहित्य हमारी जानकारी बढ़ाने के साथ-साथ बोधन शक्ति को भी जागरूक एवं सचेष्ट बनाये रखता है। जैसे दर्शन, विज्ञान आदि । ३. रचनात्मक साहित्य की पुस्तकें हमें सुख-दुःख, व्यक्तिगत स्वार्थ एवं संघर्ष से ऊपर ले जाती हैं । यह साहित्य पाठक की दृष्टि को इस तरह कोमल एवं संवेदनशील बनाता है कि व्यक्ति अपने क्षुद्र स्वार्थ एवं व्यक्तिगत सुख-दुःख को भूल कर प्राणिमात्र के प्रति तादात्म्य स्थापित कर लेता है तथा सारी दुनिया के साथ आत्मीयता का अनुभव करने लगता है। इस साहित्य को ब्रह्मानन्द सहोदर की संज्ञा दी जा सकती है क्योंकि यह साहित्य हमारे अनुभव के ताने-बाने से एक नये रसलोक की रचना करता है। इसे ही मौलिक साहित्य की कोटि में रखा जा सकता है। आचार्य तुलसी का अधिकांश साहित्य रचनात्मक साहित्य में परिगणित किया जा सकता है। क्योंकि उनकी सत्यचेतना परिपक्व एवं संस्कृत है। उन्होंने जो कुछ कहा या लिखा है वह सांसारिक क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर १. हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली भाग-७ पृ० १६३-६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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