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________________ २७६ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण संदर्भ शास्त्रीय प्रवचन का संपिक्खए अप्पगमप्पएणं १४२ /४ ६ २१२ १३२ २७ संबन्धों का आइना : बदलते हुए प्रतिबिंब संबन्धों की मिठास संबन्धों की यात्रा का आदि-बिंदु संभव है मनोवृत्ति में बदलाव संयम संयमः खलु जीवनम् संयम एक महल है संयम : एक सेतु संयम का मूल्य १४० १४२ १८७/१८९ प्रज्ञापर्व प्रवचन ५/मंजिल २ मुक्ति इसी लघुता कुहासे जब जागे दीया भोर प्रवचन ५ मंजिल १ मंजिल १ समता/उद्बो बैसाखियां सूरज जागो! क्या धर्म प्रवचम ५ समता/उद्बो ज्योति से संभल जब जागे भोर/प्रश्न प्रज्ञापर्व प्रज्ञापर्व घर ४३ संयम की आवश्यकता संयम की साधना संयम की साधना : परिस्थिति का अन्त संयम के दो प्रकार संयम के संस्कार संयम : जैन संस्कृति का प्राण संयम सर्वोच्च मूल्य है संयम से होता है शक्ति का जागरण संयम ही जीवन है १२२ १८९/१९१ २०६ ७७,१६०/३ कुहासे संयम ही सच्ची स्वतन्त्रता संयमी गुरु संयुक्त परिवार की वापसी आवश्यक संयुक्त राष्ट्रसंघ संवत्सरी संवत्सरी कब ? सावन में या भाद्रपद में संवर धर्म संवाद आत्मा के साथ संवेदनहीन जीवन-शैली संसद् की पीड़ा बैसाखियां धर्म एक अमृत/सफर मंजिल १ समता कुहासे ८२/११६ १९३ ४२४८ कुहासे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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