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________________ मा० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण दिल में समष्टिमात्र के प्रति प्रेम और मंगलभाव भरा हुआ होता है । पाश्चात्य विद्वान् साहित्यकार को सामान्य मनुष्य से कुछ भिन्न कोटि का प्राणी मानते हैं। वे सच्चे साहित्यकार में अलौकिक गुण स्वीकार करते हैं, जिससे वह स्वयं को विस्मृत कर मस्तिष्क में बुने गये ताने-बाने को कागज पर अंकित कर देता है। युगीन चेतना की जितनी गहरी एवं व्यापक अनुभूति साहित्यकार को होती है, उतनी अन्य किसी को नहीं होती। अतः अनुभूति एवं संवेदना साहित्यकार की तीसरी आंख होती है। इसके अभाव में कोई भी व्यक्ति साहित्य-सृजन में प्रवृत्त नहीं हो सकता क्योंकि केवल कल्पना के बल पर की गयी रचना सत्य से दूर होने के कारण पाठक पर उतना प्रभाव नहीं डाल सकती। प्रेमचंद भी अपनी इसी अनुभूति को साहित्यकारों तक संप्रेषित करते हुए कहते हैं- "जो कुछ लिखो, एकचित्त होकर लिखो। वही लिखो, जो तुम सोचते हो । वही कहो, जो तुम्हारे मन को लगता है । अपने हृदय के सामंजस्य को अपनी रचना में दर्शाओ, तभी प्राणवान् साहित्य लिखा जा सकता है ?' आर्याप्रसाद त्रिपाठी इस बात को निम्न शब्दों में प्रकट करते हैं- साहित्यकार अपने समय और समाज का प्रतिनिधि होता है । उसका यह दायित्व है कि समाज और देश की नाड़ी को परखे, उसकी धड़कन को समझे और फिर सृजन करे । सृजन की वेदना को स्वयं झेले पर समाज को मुस्कान के फूल अर्पित करे । विद्वानों द्वारा दी गई साहित्यकार की कुछ कसौटियां निम्न बिंदुओं में व्यक्त की जा सकती हैं साहित्यकार का लक्ष्य केवल महफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है। वह देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सचाई भी नहीं है। बल्कि उनसे भी आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सचाई है। प्रेमचंद सच्चे साहित्यकार का यही लक्षण है कि उसके भावों में व्यापकता होती है। वह विश्वात्मा से ऐसी हारमनी प्राप्त कर लेता है कि उसके भाव प्रत्येक प्राणी को अपने ही भाव मालम देने लगते हैं इसलिए साहित्यकार स्वदेश का होकर भी सार्वभौमिक होता है।.. दुनिया के दुःख दर्द से आंख मूंदने वाला महान् साहित्यकार नहीं हो सकता। हजारीप्रसाद द्विवेदी साहित्यकार की सबसे बड़ी कसौटी है कि वह अपने प्रति सच्चा रहे । जो अपने प्रति सच्चा रहकर साहित्य सृजन करता है, उसका साहित्य स्वतः १. साहित्य का उद्देश्य, पृ० १४२ २. कबीर साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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