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________________ परिशिष्ट १ गीता का विकर्म : जैन दर्शन का भावकर्म गीता की अद्वैत दृष्टि और संग्रह नय गुण क्या है ? गुणस्थान दिग्दर्शन गुरु-दर्शन का वास्तविक उद्देश्य गुरु बिन घोर अंधेर गुमराह दुनिया गौण को मुख्य न मानें ग्राम धर्म : नगर धर्म ग्राम-निर्माण की नयी योजना ग्रीष्मावकाश का उपयोग बीती ताहि शांति के प्रवचन ८ मंजिल २ २२८ प्रवचन ४ मुखड़ा सूरज जागो ! प्रवचन ४ अनैतिकता/अतीत का २३१/२२ अणु गति ७८ घर का स्वर्ग घर के भीतर कौन ? बाहर कौन ? घर क्यों छोड़ना पड़ा? घर में प्रवेश करने के द्वार घर लघुता समता बैसाखियां २४५ १५७ १२५ १२४ ज्योति से अणु संदर्भ धर्म : एक बैसाखियां मनहंसा भोर मनहंसा १३९ चंद्रयात्रा : एक अनुचिन्तन चंद्रयात्रा और शास्त्र-प्रामाण्य चंपतराय जैन चक्षुष्मान् मनुष्य और एक दीपक चत्तारि सरणं पवज्जामि चरित्र और उपासना चरित्र का मानदण्ड चरित्र की प्रतिष्ठा चरित्र की महत्ता चरित्र की समस्या : अणुव्रत का समाधान । चरित्र के क्षेत्र में विरल उदाहरण : पारमार्थिक शिक्षण संस्था चरित्र को सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त हो चरित्र-निर्माण और साधना चरित्र-निर्माण का आंदोलन : अणुव्रत भोर १५२ सूरज बूंद बूद १ १८७ १४१/१७५ अमृत/सफर भोर बीती ताहि प्रवचन ११ ९५ २३ १३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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