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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण आवाज उठाएंगे, अहिंसात्मक तरीके से समाज की इन घिनौनी प्रवृत्ति पर अंगुलिनिर्देश करेंगे तो दहेज की परम्परा चरमराकर टूट पड़ेगी। समाज में क्रांति पैदा करने का उनका दृढ़ संकल्प समय-समय पर मुखरित होता रहता है-"समाज के जिस हिस्से में शोषण है, झूठ है, अधिकारों का दमन है, उसे मैं बदलना चाहता हूं और उसके स्थान पर नैतिकता एवं पवित्रता से अनुप्राणित समाज को देखना चाहता हूं। इसलिए मैं जीवन भर शोषण और अमानवीय व्यवहार के विरोध में आवाज उठाता रहूंगा।" धर्मक्रांति का स्वरूप उनके शब्दों में इस प्रकार है-"धर्मक्रांति का स्वरूप है-जो न धर्मग्रंथों में उलझे, न धर्मस्थानों में । जो न स्वर्ग के प्रलोभन से हो और न नरक के भय से । जिसका उद्देश्य हो जीवन की सहजता और मानवीय आचारसंहिता का ध्रुवीकरण । धर्मक्रांति द्वारा उन्होंने धर्म को मंदिर-मस्जिद के कटघरे से निकाल कर आचरण के साथ जोड़ने का प्रयत्न किया है । उन्होंने धर्मक्रांति के पांच सूत्र दिए हैं१. धर्म को अन्धविश्वास की कारा से मुक्त कर प्रबुद्ध लोक-चेतना के साथ जोड़ना। २. रूढ़ उपासना से जुड़े हुए धर्म को प्रायोगिक रूप देना । ३. परलोक सुधारने के प्रलोभन से ऊपर उठाकर धर्म को वर्तमान जीवन की शुद्धि में सहायक बनाना । ४. युगीन समस्याओं के संदर्भ में धर्म को समाधान के रूप में प्रस्तुत करना। ५. धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाइयों को आपसी वार्तालाप के द्वारा निपटाकर सब धर्मों के प्रति सद्भावना का वातावरण निर्मित करना। तथाकथित धार्मिकों के जीवन पर व्यंग्य करती उनको ये पंक्तियां कितनी क्रांतिकारी बन पड़ी हैं पानी को भी छानकर पीने वाले, चींटियों की हिंसा से भी कांपने वाले, प्रतिदिन धर्मस्थान में जाकर पूजा-पाठ करने वाले, प्रत्येक प्राणी में समान आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करने वाले धार्मिकों को जब तुच्छ स्वार्थ में फंसकर मानवता के साथ खिलवाड़ करते देखता हूं, धन के पीछे पागल होकर इन्सानियत का गला घोंटते देखता हूं तो मेरा अन्तःकरण बेचैन हो जाता है। १. अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी, पृ० १७८ २. कुहासे में उगता सूरज, पृ० १४६ ३. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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