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________________ १२६ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण खोए १२२ १४४ १२४ खोए मनहंसा आलोक में खोए १५० ७० ३० ८२ । आंख मूंदना ही ध्यान नहीं केवल सुनने से मंजिल नहीं एकाग्रता है ध्यान की कसौटी शरीर और मन का संतुलन स्वयं सत्य खोजें साधना सफलता का प्रमाण लघुता से प्रभुता मिले क्या अरति ? क्या आनन्द ? साधना की भूमिकाएं आत्मदर्शन का राजमार्ग आओ, जलाएं हम आत्मालोचन का दीया घर के भीतर कौन ? बाहर कौन ? भोगातीत चेतना का विकास आत्मा ही बनता है परमात्मा स्वयं को खोजना है समाधान पहचान : अन्तरात्मा और बहिरात्मा की जहां से सब स्वर लौट आते हैं जागरण के बाद प्रमाद क्यों ? साधना कब और कहां ? सावधानी की संस्कृति मन चंगा तो कठौती में गंगा खोने के बाद पाने का रहस्य तन्मयता जैनमुनि और योगासन' उपशम रस का अनुशीलन आत्म पवित्रता का साधन कौन होता है चक्षुष्मान् ? साधना का उद्देश्य मंजिल तक ले जाने वाला आस्था सूत्र जीवन का पहला बोधपाठ मुखड़ा लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता लघुता कुहासे जब जागे जब जागे खोए बूंद-बूंद २ संभल संभल १०० १३१ १४६ १३६ १४१ १७० २०४ १०८ १३५ ११३ दीया दीया कुहासे २५८ मनहंसा ३३ १. १६-८-६५ दिल्ली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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