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________________ ३८ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण श्रावक का दायित्व' सामायिक अर्हन्नक की आस्था श्रावक समाज को कर्तव्यबोध' सामायिक भय का हेतु : दुःख आचार और मर्यादा' प्रवचन ९ प्रवचन ५ गृहस्थ/मुक्तिपथ मुक्ति इसी प्रवचन ९ मंजिल २ आगे २०७ १०८ १७३/१५६ ८५ / १५७ २६५ तप १६५ २८ तपस्या का कवच तप है आंतरिक बीमारी की औषधि बहिरंग योग की सार्थकता सम्यक् तप तप साधना का प्राण है प्रदर्शन बनाम दर्शन तपस्या स्वयं ही प्रभावना है। अनुत्तर तप और अनुत्तर वीर्य ९६/९१ ७३ कुहासे जब जागे जब जागे गृहस्थ/मुक्तिपथ ज्योति से मंजिल १ प्रवचन ४ बूंद बूंद २ सूरज जागो ! १३६ तप १६८ गृहस्थ/मुक्तिपथ प्रवचन ९ ७२/६९ १२४ ८० तप और उसका आचार" रात्रिभोजन विरमण रात्रिभोजन का औचित्य रात्रिभोजन त्याग : एक तप१३ समाधिमरण अनशन किसलिए? मृत्युञ्जयी बनने का उपक्रम : अनशन१४ १.८-८-५३ जोधपुर । २. १८-१२-७७ लाडनूं । ३. श्रावक सम्मेलन । ४. २५-२-५३ लूणकरणसर । ५. २१-५-७८ लाडनूं। ६.१५-५-६६ पीलीबंगा। ७. १-८-७० रायपुर। १७२ मेरा धर्म सोचो ! ३ ८. १०-१०-७६ सरदारशहर । ९. १६-९-७७ लाडनूं । १०. १४-९.६५ दिल्ली। ११.७-७-५५ उज्जैन । १२. १६-५.५३ बीकानेर । १३. १८-११.६५ दिल्ली। १४. २-४-७८ लाडनूं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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