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________________ २४० आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण प्रस्तुत कृति आज की घिनौनी राजनीति पर तो व्यंग्य करती ही है साथ ही लोकतन्त्र को स्वस्थ एवं तेजस्वी बनाने के सूत्रों का भी विश्लेषण करती है । सत्ता के इर्द-गिर्द विकृतियों को दूर कर राजनीति के क्षितिज को रचनात्मक दिशा देने का सार्थक प्रयास प्रस्तुत कृति में हुआ है । साथ ही ऐसे स्वच्छ एवं प्रेरक राजनैतिक व्यक्तित्व की छवि उकेरी गयी है, जो लोकतन्त्र के सुदृढ़ आधार बन सकें।' बहुविध विषयों को अपने भीतर समेटे हुए यह पुस्तक एक विशिष्ट कृति के रूप में उभरी है। क्योंकि इसमें वर्तमान ही नहीं, आने वाला कल भी प्रतिबिम्बित है अतः ऐसी कृतियों की महत्ता सामयिक नहीं, अपितु त्रैकालिक है। __यह पुस्तक 'विचार दीर्घा' एवं 'विचार वीथी' में मुद्रित सामग्री का ही नया संस्करण है। लघुता से प्रभुता मिले हर व्यक्ति प्रभुता सम्पन्न बनना चाहता है । आचार्य तुलसी कहते हैं-"प्रभुता पाने का रास्ता है-प्रभुता पाने की लालसा का विसर्जन । क्योंकि जब तक यह लालसा मनुष्य पर हावी रहती है, वह अपने करणीय के प्रति सचेत नहीं रह सकता।" अतः लघुता ही एकमात्र उपाय है-प्रभुता पाने का । प्रस्तुत पुस्तक में प्रभुता सम्पन्न बनने की अनेक दिशाओं एवं प्रयोगों का उद्घाटन हुआ है। समीक्ष्य ग्रंथ में पुराने सन्दर्भो, मूल्यों एवं आदर्शों को नए सन्दर्भो एवं नए मूल्यों के साथ प्रकट किया गया है। ___ इस पुस्तक में आचारांग के सूक्तों की गम्भीर एवं सरस व्याख्या है। सम्पादन-कुशलता के कारण इन प्रवचनों ने निबन्ध का रूप ले लिया है। 'आयारो' ग्रन्थ पर आधारित ये ५१ प्रवचन विविध विषयों को अपने भीतर समेटे हुए हैं। ये सभी प्रवचन वार्तमानिक समस्याओं से सम्बद्ध हैं तथा आगमों के आलोक में समाधान की नई दिशा प्रस्तुत करते हैं। ____ इस कृति के बारे में महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी का विचार है कि इस पुस्तक के द्वारा आचार्यवर ने जन-साधारण और प्रबुद्ध---दोनों वर्गों को समान रूप से उपकृत किया है....। ऐसी भास्वर कृतियों के अध्ययन-मनन से हमारे अज्ञान तिमिर की उम्र कुछ तो घटेगी ही। ___ यह पुस्तक योगक्षेम वर्ष में हुए प्रवचनों का तृतीय संकलन है, साथ ही साहित्यिक , आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक लेखों का उपयोगी संग्रह है। विचार दीर्घा 'विचार दीर्घा' कृति आचार्यश्री के विभिन्न सन्दर्भो में व्यक्त विचारों का संकलन है। इस पुस्तक में राजनैतिक परिवेश में व्याप्त अनैतिक स्थितियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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