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________________ २३८ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण जो बात ठीक नहीं लगती, उसका वे बेहिचक प्रतिवाद करते हैं । फिर चाहे उन्हें कितना ही विरोध सहना पड़े । 'मेरा धर्म : केन्द्र और परिधि' कृति धर्म के उस रूप को प्रकट करती है, जो क्रियाकांडों एवं जड़ उपासना पद्धति से अनुबंधित नहीं, अपितु जीवन को भौतिकता की चकाचौंध से निकालकर अध्यात्म की गहराइयों में ले जाने में सक्षम है । सांप्रदायिकता का जहर आज मानवता को मृतप्रायः बना रहा है। इस सांप्रदायिक समस्या को समाधान देते हुए आचार्य तुलसी इस पुस्तक में कहते हैं " सम्प्रदाय उपयोगी है यदि वह धर्म का प्रतिबिम्बग्राही हो । जब सम्प्रदाय कोरा संप्रदाय रह जाये, उसमें धर्म का प्रतिबिम्ब ग्रहण करने की क्षमता न रहे तो वह अनिष्टकर हो जाता है ।" इस प्रकार सांप्रदायिकता और धर्मान्धता के विरुद्ध यह कृति ऐसा वातावरण तैयार करती है, जो धर्म या मजहब के नाम पर मानवीय एकता को तोड़ने वाली शक्तियों को सबक दे सके । अड़तीस लेखों के इस संकलन में लेखक ने धर्म और सम्प्रदाय के सम्बन्ध में न केवल अपनी अवधारणाओं को स्पष्ट किया है। बल्कि पाठकों के बीच बनी धर्म एवं सम्प्रदाय सम्बन्धी भ्रांतियों का निराकरण भी किया है । इसके अतिरिक्त " हिन्दू : नया चिन्तन, नयी परिभाषा" में हिन्दू शब्द की नयी व्याख्या प्रस्तुत की है, जो हमारी राष्ट्रीय अखण्डता को बनाए रखने में सक्षम है । " धार्मिक समस्याएं : एक अनुचिन्तन" लेख में धर्म के नाम पर फैली अशिक्षा, अन्धविश्वास एवं रूढ़िवादिता पर करारा व्यंग्य किया है । तेरापंथ से सम्बन्धित अनेक लेख तेरापन्थ के इतिहास एवं उसके दर्शन की समग्र जानकारी देते हैं । इसके अतिरिक्त विश्वशांति, निःशस्त्रीकरण जैसे अन्य सामयिक विषयों का भी इसमें सुन्दर आकलन किया गया है। यह पुस्तक नास्तिक व्यक्ति को भी धर्म एवं अध्यात्म की ओर उन्मुख करने में समर्थ एवं सक्षम है निःसन्देह कहा जा सकता है कि इसमें समझदार, संवेदनशील एवं संस्कारवान् पाठक को जीवन की नई दिशा देने का सार्थक एवं रचनात्मक प्रयास हुआ है । राजधानी में आचार्यश्री तुलसी के सन्देश आचार्य तुलसी का दिल्ली में प्रथम प्रवास सन् १९५० में हुआ । यह प्रवास अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक और प्रभावकारी रहा। आचार्य तुलसी ने इस प्रवास में अपने उपदेशों द्वारा अहिंसक क्रांति उत्पन्न करने का अभिनव प्रयास किया । अणुअस्त्रों में ही शांति का दर्शन करने वाले विश्वमानस का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया कि अणुबम और उद्जनबम के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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