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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन १९९ की पृष्ठभूमि को समझने में यह पुस्तिका सफल मार्गदर्शन करती है । __ अणुव्रत के आलोक में "अणुव्रत ने अब तक क्या किया? कितना किया ? और कैसे किया? इसका पूरा लेखा-जोखा एकत्रित करना दुःसंभव है। किंतु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मानवीय मूल्यों के संदर्भ में वैचारिक क्रांति की दृष्टि से भारत के धरातल पर यह एक प्रथम उपक्रम है । अणुव्रत भारत की जनता के लिए संजीवनी का कार्य करने वाला है, इस तथ्य से आज किसी को सहमति हो या न हो, पर कोई इतिहासकार जब नव भारत का इतिहास लिखेगा, तब अणुव्रत का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा ।" लगभग ५० साल पूर्व अभिव्यक्त आचार्य तुलसी का यह आत्मविश्वास इसके उज्ज्वल भविष्य का द्योतक है । अणुव्रत ने देश के अनैतिक वातावरण के विरोध में सशक्त आवाज उठाई है। अणुव्रत दर्शन को स्पष्ट करने के लिए प्रचुर साहित्य का निर्माण हुआ। उसमें "अणुव्रत के आलोक में" पुस्तक का अपना विशिष्ट स्थान है। आलोच्य कृति में नैतिकता का सर्वांगीण विश्लेषण हुआ है। यह विश्लेषण सैद्धांतिक ही नहीं, व्यवहारिक भी है। इसमें यह भी प्रतिपादित है कि नैतिकता देश, काल, परिवेश, वर्ग एवं संप्रदाय से परिछिन्न नहीं, अपितु सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। इसमें विषयों का स्पष्टीकरण वार्ताओं के रूप में हुआ है। साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी की जिज्ञासाएं इतनी सामयिक और सटीक हैं कि हर पाठक यह अनुभव करता है मानो उसकी भीतरी समस्या को ही यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रस्तुत कृति अणुव्रत की राजनैतिक, आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक महत्ता को तो स्पष्ट करती ही है साथ ही इनसे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान भी करती है। लगभग ५१ वार्ताओं को अपने भीतर समेटे हुए यह पुस्तक अणुव्रत की आचार-संहिता एवं उसके इतिहास का विस्तृत एवं वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करती है, साथ ही समाज की विविध विसंगतियों की ओर अंगुलिनिर्देश करके उसे दूर करने की प्रेरणा भी देती है। भारत के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को नए स्वरूप एवं नए परिवेश में प्रस्तुत करने वाली यह कृति आज की भटकती युवापीढ़ी को नयी दिशा दे सकेगी, ऐसा विश्वास है। अणुव्रत के संदर्भ में अणुव्रत एक साधना है, मानवीय आचार संहिता है पर आचार्य तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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