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________________ १९२ आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण विज्ञापन व्यवसाय से होने वाली हानियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण वे इन शब्दों में करते हैं- "यह मानवीय दुर्बलता है कि मनुष्य किसी घटना के अच्छे पक्ष को कम पकड़ता है और गलत प्रवाह में अधिक बहता है । बच्चे तो नासमझ होते हैं अतः विज्ञापन की हर चीज की मांग कर बैठते हैं । खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने अथवा किसी अन्य काम में आने वाली नई चीज का विज्ञापन देखते ही वे उसे पाने के लिए मचल उठते हैं। ऐसी स्थिति में माता-पिता के लिए समस्या खड़ी हो जाती है ।" "" १२ 113 फिल्म - व्यवसाय को वे राष्ट्र के चरित्रबल को क्षीण करने का बहुत बड़ा कारण मानते हैं । यद्यपि वे फिल्म - व्यवसाय पर सर्वथा प्रतिबन्ध लगाने की बात अव्यावहारिक और अमनोवैज्ञानिक मानते हैं, फिर भी उनका सुझाव है - " एक उम्र विशेष तक फिल्म देखने पर यदि प्रतिबन्ध हो तो मैं इसमें लाभ ही लाभ देखता हूं । भारत की युवापीढ़ी इस प्रतिबन्ध के लिए कहां तक तैयार है, यह अवश्य ही शोचनीय प्रश्न है । किन्तु इसके सुखद परिणाम सुनिश्चित हैं ।' फिल्म व्यवसाय से होने वाले दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए वे कहते हैं - " फिल्म के कामोत्तेजक दृश्य और गाने, वासना को उभारने वाले पोस्टर अंग प्रत्यंगों को उभारकर दिखाने वाली या अधनंगी पोशाकें ये सब युवापीढ़ी के चरित्र को गुमराह करती हैं। मैं मानता हूं, फिल्म व्यवसाय राष्ट्र के चारित्रिक पतन का मुख्य कारण है ।' बढ़ती बेरोजगारी का कारण आचार्य तुलसी विज्ञान द्वारा आविष्कृत नए-नए यन्त्रों को मानते हैं । यद्यपि आचार्य तुलसी यन्त्रों के विरोधी नहीं हैं पर उनके सामने चेतन प्राणी का अस्तित्व शून्य हो जाए, वह निष्क्रिय और अकर्मण्य बन जाए, इसके वे विरोधी हैं । इस सन्दर्भ में उनकी निम्न टिप्पणियां वैज्ञानिकों को भी कुछ सोचने को मजबूर कर रही है -- " यन्त्र का अपना उपयोग है पर यन्त्र का निर्माता और नियंता स्वयं यन्त्र बन गया तो इस दिशा में नए आयाम कैसे खुलेंगे ?४ प्रश्न होता है कि क्या करेंगे इतने यन्त्र मानव ? मनुष्य तो वैसे भी निकम्मा होता जा रहा है। मशीनों की कार्यक्षमता इतनी बढ़ रही है कि एक मशीन सैकड़ों सैकड़ों मनुष्यों का काम कुछ ही समय में निपटा देती है। मशीनी मानवों के सामने इतना कौन-सा काम रहेगा, जो उनको निरन्तर व्यस्त रख सके अन्यथा ये यंत्र मानव निकम्मे होकर आपस में लड़ेंगे, मनुष्यों को तंग करेंगे या और कुछ १. कुहासे में उगता सूरज, पृ० ४९ । २. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १७२ । ३. वही, पृ० १७१ | ४. बैसाखियां विश्वास की, पृ० १८, १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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