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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन १८३ की जितनी आकांक्षा होती है, शायद उससे भी अधिक आकांक्षा उन महिलाओं के मन में ढेर सारा धन बटोरने की पल रही होगी, जो समाज के मूल्य-मानकों को ताक पर रखकर कैमरे के सामने प्रस्तुत होती हैं।" ___ आचार्य तुलसी ने अनेक बार इस सत्य को अभिव्यक्त किया है कि पुरुष नारी के विकास में अवरोधक बना है, इसमें सत्यांश हो सकता है पर नारी स्वयं नारी के विकास में बाधक बनती है, यह वास्तविकता है। दहेज की समस्या को बढ़ाने में नारी जाति की अहंभूमिका रही है, इसे नकारा नहीं जा सकता। इसी बात को आश्चर्यमिश्रित भाषा में प्रखर अभिव्यक्ति देते हुए वे कहते हैं-"आश्चर्य इस बात का है कि दहेज की समस्या को बढ़ाने में पुरुषों का जितना हाथ है, महिलाओं का उससे भी अधिक है । दहेज के कारण अपनी बेटी की दुर्दशा को देखकर भी एक मां पुत्र की शादी के अवसर पर दहेज लेने का लोभ संवरण नहीं कर सकती । अपनी बेटी की व्यथा से व्यथित होकर भी वह बहू की व्यथा का अनुभव नहीं करती।" ___ इसी संदर्भ में उनका दूसरा उदबोधन भी नारी-चेतना एवं उसके आत्मविश्वास को जागृत करने वाला है-"दहेज के सवाल को मैं नारी से ही शुरू करना चाहता हूं। मां, सास तथा स्वयं लड़की जब दहेज को अस्वीकार करेगी तभी उसका सम्मान जागेगा। इस तरह एक सिरे से उठा आत्मसम्मान धीरे-धीरे पूरी समाज-व्यवस्था में अपना स्थान बना सकता है । एक धर्माचार्य होने पर भी नारी जाति से जुड़ी ऐसी अनेक रूढियों एवं कमजोरियों की जितनी स्पष्ट अभिव्यक्ति आचार्य तुलसी ने अपने साहित्य में दी है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। नारी जाति को विकास का सूत्र देते हुए उनका कहना है-... "विकास के लिए बदलाव एवं ठहराव दोनों जरूरी हैं । मौलिकता स्थिर रहे और उसके साथ युगीन परिवर्तन भी आते रहें, इस क्रम से विकास का पथ प्रशस्त होता है । आचार्य तुलसी नारी की शक्ति के प्रति पूर्ण आश्वस्त हैं। उनका इस बात में विश्वास है कि अगर नारी समाज को उचित पथदर्शन मिले तो वे पुरुषों से भी आगे बढ़ सकती हैं । वे कहते हैं --- "मेरे अभिमत से ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे महिलाएं न कर सकें ।"५ अपने विश्वास को १. कुहासे में उगता सूरज , पृ० ११३ । २. अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी, पृ० १७८ । ३. अणुव्रत अनुशास्ता के साथ, पृ० २९ । ४. दोनों हाथ : एक साथ, पृ० ४५। ५. बहता पानी निरमला, पृ० २८१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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