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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन १७९ पर अपनी परम्परा का निर्वाह करना चाहते थे। ऐसी परिस्थिति में मैं अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर सकता हूं, किन्तु किसी पर दबाव नहीं डाल सकता । " 2 सामाजिक क्रांति से आचार्य तुलसी का स्पष्ट अभिमत है- "जहां क्रांति का प्रश्न है, वहां दबाव या भय से काम तो हो सकता है, पर उस स्थिति को क्रांति नाम से रूपायित करने में मुझे संकोच होता है ।" उनकी दृष्टि में क्रांति की सफलता के लिए जनमत को जागृत करना आवश्यक है । हजारीप्रसाद द्विवेदी का मंतव्य है "सिर्फ जानना या अच्छा मानना ही काफी नहीं होता, जानते तो बहुत से लोग हैं, परन्तु उसको ठीक-ठीक अनुभव भी करा देना साहित्यकार का कार्य है ।"" 113 आचार्य तुलसी के सत्प्रयासों एवं ओजस्वी वाणी से समाज ने एक नई अंगड़ाई ली है, युग की नब्ज को पहचानकर चलने का संकल्प लिया है तथा अपनी शक्ति का नियोजन रचनात्मक कार्यों में करने का अभिक्रम प्रारम्भ किया है । यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आचार्य तुलसी द्वारा की गयी सामाजिक क्रांति का यदि लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाए तो एक स्वतंत्र शोधप्रबंध तैयार किया जा सकता है । " नारो पुरुष हृदय पाषाण भले ही हो सकता है, नारी हृदय न कोमलता को खो सकता है । पिघल - पिघल अपने अन्तर को धो सकता है, रो सकता है, किंतु नहीं वह सो सकता है || आचार्य तुलसी द्वारा उद्गीत इन काव्य पंक्तियों में नारी की मूल्यवत्ता एवं गुणात्मकता की स्पष्ट स्वीकृति है । आचार्य तुलसी मानते हैं कि महिला वह धुरी है, जिसके आधार पर परिवार की गाड़ी सम्यक् प्रकार से चल सकती है । धुरी मजबूत न हो तो कहीं भी गाडी के अटकने की संभावना बनी रहती है ।" उनकी दृष्टि में संयम, शालीनता, समर्पण, सहिष्णुता की सुरक्षा पंक्तियों में रहकर ही नारी गौरवशाली इतिहास का सृजन कर सकती है । आचार्य तुलसी के दिल में नारी की कितनी आकर्षक तस्वीर है, १. राजपथ की खोज, पृ० २०२ । २. अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी, पृ० १९३ । ३. हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली भाग ७, १० २०६ | ४. दोनों हाथ एक साथ, पृ० ४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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