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________________ १७४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण के बीच सेतु का काम करते रहते हैं । आचार्य तुलसी ने अपने साहित्य में अंधरूढ़ियों के विरोध में क्रांति की आवाज ही बुलन्द नहीं की अपितु उनके संशोधन एवं परिवर्तन की प्रक्रिया एवं प्रयोग भी प्रस्तुत किए हैं क्योंकि उनकी मान्यता है कि परिवर्तन और क्रांति के साथ यदि नया विकल्प या नई परम्परा समाज के समक्ष प्रकट नहीं की जाए तो वह क्रांति या परिवर्तन सफल नहीं हो पाता है। आचार्य तुलसी के क्रांतिकारी व्यक्तित्व का अंकन करते हुए राममनोहर त्रिपाठी कहते हैं ---"क्रांति की बात करना आसान है पर करना बहुत कठिन है। इसके लिए समग्रता से प्रयत्न करने की अपेक्षा रहती है । आचार्य तुलसी जैसे तपस्वी मानव ही ऐसा वातावरण निर्मित कर सकते हैं।" आचार्य तुलसी के समक्ष यह सत्य स्पष्ट है कि परम्परा का व्यामोह रखने वाले और विरोध की आग से डरने वाले कोई महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न नहीं कर सकते ।" जब आचार्य तुलसी ने सड़ी-गली मान्यताओं के विरोध में अपनी सशक्त आवाज़ उठाई, तब समाज में होने वाली तीव्र प्रतिक्रिया उनकी स्वयं की भाषा में पठनीय है---''मैंने समाज को सादगीपूर्ण एवं सक्रिय जीवन जीने का सूत्र तब दिया, जब आडम्बर और प्रदर्शन करने वालों को प्रोत्साहन मिल रहा था। इससे समाज में गहरा ऊहापोह हुआ। धर्माचार्य के अधिकारों की चर्चाएं चलीं। सामाजिक दायित्व का विश्लेषण हुआ और मुझे परम्पराओं का विघटक घोषित कर दिया गया। मेरा उद्देश्य स्पष्ट था इसलिए समाज की आलोचना का पात्र बनकर भी मैंने समय-समय पर प्रदर्शनमूलक प्रवृत्तियों, अंधपरम्पराओं और अंधानुकरण की वृत्ति पर प्रहार किया । वे प्रवचनों एवं निबंधों में स्पष्ट कहते रहते हैं - "मैं रूढ़ियों का विरोधी हूं, न कि परम्परा का। समाज में उसी परम्परा को जीवित रहने का अधिकार है, जो व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की धारा से जुड़कर उसे गतिशील बनाने में निमित्त बनती है। पर मैं इतना रूढ़ भी नहीं हूं कि अर्थहीन परम्पराओं को प्रश्रय देता रहूं।''3 वे इस सत्य को जीवन का आदर्श मानकर चल रहे हैं - "मैं परिवर्तन के समय में स्थिरता में विश्वास बनाए रखना चाहता हूं और स्थिरता के लिए परिवर्तन में विश्वास करता हूं । वह परिवर्तन मुझे मान्य नहीं, जहां सत्य की विस्मृति हो जाए । १. एक बंद : एक सागर, पृ० ८५१ । २. राजपथ की खोज, पृ० २०१ । ३. एक बूंद : एक सागर, पृ० ८५२,८५३ । ४. वही, पृ० ८६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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