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________________ १६४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण आदि की प्रेरणा देना ही नहीं है । समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के साथ सामाजिक मूल्यों के परिष्कार का दायित्व भी उन्हीं पर होता है क्योंकि किसी भी समाज में धर्मगुरु के निर्देश का जितना पालन होता है, अन्य किसी का नहीं होता।" आचार्य तुलसी के उद्बोधन से समाज ने एक नयी करवट ली है तथा उसने युग के अनुसार अपने को बदलने का प्रयास भी किया है। दक्षिण यात्रा की एक घटना इसका बहुत बड़ा निदर्शन है--कन्याकुमारी के बाद जब आचार्य तुलसी केरल जाने लगे तब उन्होंने सोचा कि केरल में साम्यवादी सरकार है। यात्रा में इतनी बहिनें चूंघट और आभूषणों से लदी हैं, यह ठीक नहीं होगा। कोई मुसीबत खड़ी हो सकती है अतः रात्री में यात्रा-संघ की गोष्ठी बुलाई गई। महिलाओं को निर्देश दिया गया कि या तो चूंघट और आभूषणों का मोह त्यागें अथवा मंगलपाठ सुनकर राजस्थान की ओर रवाना हो जाएं। बहिनों के मन में उथल-पुथल मच गयी । वर्षों के संस्कार को एक क्षण में छोड़ना कठिन था। आचार्यश्री को भी विश्वास नहीं था कि बहिनें वैसा कर पाएंगी क्या ? पर आश्चर्य ! दूसरे ही दिन सभी बहिनें अपने धर्मगुरु के एक आह्वान पर परिवर्तन कर चुकी थीं। उनके उद्बोधनों ने समाज की अनेक रूढ़ियों को इसी प्रकार विदाई दी है। समाज के सम्यक् विकास एवं गति हेतु वे नारी जाति को उचित सम्मान देने के पक्षपाती हैं। उन्होंने अनेक बार इस स्वर को मुखर किया है-"जो समाज नारी को सम्मानपूर्वक जीने, स्वतन्त्र चिंतन करने और अपनी अस्मिता को पहचानने का अधिकार नहीं देता, वह विकास नहीं कर सकता । वे समाज को प्रतिबोध देते हैं कि स्त्री होने के कारण महिला जाति की क्षमताओं का समुचित अंकन और उपयोग न हो, इस चितन के साथ मेरी सहमति नहीं है। समाज में उचित व्यवस्था एवं सामंजस्य बनाए रखने के लिए आचार्य तुलसी नारी और पुरुष- समाज के इन दोनों वर्गों को सावधान करते हुए कहते हैं - "यदि पुरुष नारी बनने की कोशिश करेगा एवं नारी पुरुष बनने का प्रयत्न करेगी तो समाज और परिवार रुग्ण बने बिना नहीं रह सकेगा।" उसकी स्वस्थता का एक ही आधार है कि दोनों की विशेषताओं का पूरा-पूरा समादर किया जाए। प्रगतिशील एवं आधुनिक कहलाने का दम्भ भरने वाले नारी समाज १. दोनों हाथ : एक साथ, पृ० ४२ । २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १४९५ । ३. अणुव्रत अनुशास्ता के साथ, पृ० २७ । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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