SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन १५७ को लिखने, बोलने, सोचने और करने की स्वतंत्रता होती है। जनता के स्वतंत्र अधिकारों का हनन करने वाले शासकों के समक्ष आचार्य तुलसी चेतावनी की भाषा में प्रश्न उपस्थित करते हैं- "जिस देश के शासक यह कहते हैं कि जनता को सोचने की जरूरत नहीं है, सरकार उसके लिए देखेगी। जनता को बोलने की अपेक्षा नहीं है, सरकार उसके लिए बोलेगी और जनता को कुछ करने की जरूरत नहीं है, सरकार उसके लिए करेगी । क्या शासक इन घोषणाओं के द्वारा जनता को पंगु, अशक्त और निष्क्रिय बनाकर लोकतंत्र की हत्या नहीं कर रहे हैं ?"१ समानता लोकतंत्र का हृदय है । आचार्य तुलसी कहते हैं—'कुछ लोग कोठियों में रहें, कुछ को फुटपाथ पर रात बितानी पड़े, यह विषमता आज के विश्व को मान्य नहीं हो सकती क्योंकि इसकी अंतिम परिणति हिंसा और संघर्ष है।"२ लोकतंत्र के संदर्भ में समानता को स्पष्ट करने वाली डा० अम्बेडकर की निम्न पंक्तियां उल्लेखनीय हैं-"प्रत्येक बालिग स्त्री पुरुष को मतदान का अधिकार देकर संविधान ने राजनीतिक समता तो ला दी किंतु आर्थिक और सामाजिक समता अभी आयी नहीं है। यदि इस दिशा में भारत ने सफल प्रयत्न नहीं किया तो राजनीतिक समता निकम्मी सिद्ध होगी, संविधान टूट जाएगा।" आचार्य तुलसी अनेक बार इस चितन को अभिव्यक्ति दे चुके हैं कि यदि देश के लोकतंत्र को मजबूत और संगठित बनाना है तो मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को प्रशिक्षित करना होगा। इसी बात की प्रस्तुति व्यंग्यात्मक शैली में पठनीय है- "मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि इन मंत्रियों, विधायकों आदि को कोई प्रशिक्षण नहीं मिलता, जबकि एक वकील, इंजीनियर या डाक्टर को पहले प्रशिक्षण लेना पड़ता है। मैं सोचता हूं कि विधायकों के लिए भी एक प्रशिक्षण केन्द्र होना आवश्यक है । "बिना प्रशिक्षण चुनाव में कोई उम्मीदवार के रूप में खड़ा न हो । मेरा विश्वास है ---अणुव्रत यह प्रशिक्षण देने में समर्थ है।'' राष्ट्रीय एकता अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति का आदर्श रहा है। यहां अनेक धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ण, प्रान्त एवं राजनैतिक पार्टियां हैं, पर भिन्नता और अनेकता होने मात्र से सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय एकता को विघटित नहीं किया जा सकता । आचार्य तुलसी का मंतव्य है कि भिन्नताओं का लोप कर १. सफर : आधी शताब्दी का, पृ० ९८ । २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १२७२ । ३. जैन भारती, ३० नवम्बर, १९६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy