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________________ अठारह वाणी मुखर हो गयी। बीसवीं सदी के भाल पर अपने कर्तत्व की जो अमिट रेखाएं उन्होंने खींची हैं, वे इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगी। साहित्यस्रष्टा के साथसाथ वे धर्मक्रांति एवं समाजक्रांति के सूत्रधार भी कहे जा सकते हैं । जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति डा. रामजीसिंह कहते हैं... "आचार्य तुलसी ने धर्मक्रान्ति को जन्म दिया है, उसका नेतृत्व किया है। वे उसके पर्याय बन चुके हैं। इसलिए आगे आने वाली सदी को समाज आचार्य तुलसी की सदी के रूप में जाने-माने तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।" आचार्य तुलसी के विराट् व्यक्तित्व को किसी उपमा से उपमित करना उनके व्यक्तित्व को ससीम बनाना है। उनके लिए तो इतना ही कहा जा सकता है कि वे अनिर्वचनीय हैं । आचार्य मानतुंग के शब्दों में यह कहना पर्याप्त होगा---'यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति। बालवय में संन्यास के पथ पर प्रस्थित होकर क्रमशः आचार्य, अणुव्रत अनुशास्ता, राष्ट्रसंत एवं मानव-कल्याण के पुरोधा के रूप में वे विख्यात हुए हैं। काल के अनंत प्रवाह में ८० वर्षों का मूल्य बहुत नगण्य होता है, पर आचार्य तुलसी ने उद्देश्यपूर्ण जीवन जीकर जो ऊंचाइयां और उपलब्धियां हासिल की हैं, वे किसी कल्पना की उड़ान से भी अधिक हैं । अपने जीवन के सार्थक प्रयत्नों से उन्होंने इस बात को सिद्ध किया है कि साधारण पुरुष वातावरण से बनते हैं, किन्तु महामानव वातावरण बनाते हैं । समय और परिस्थितियां उनका निर्माण नहीं करतीं, वे स्वयं समय और परिस्थितियों का निर्माण करते हैं । साधारण पुरुष जहां अवसर को खोजते रहते हैं, वहां महापुरुष नगण्य अवसरों को भी अपने कर्तृत्व की छेनी से तराश कर उसे महान् बना देते हैं। उम्र के जिस मोड़ पर व्यक्ति पूर्ण विश्राम की बात सोचता है, उस स्थिति में वे नव-सजन करने एवं दूसरों को प्रेरणा देने में अहर्निश लगे रहते हैं । विरोध को समभाव से सहक र वे जिस प्रकार उसे विनोद के रूप में बदलते रहे हैं, वह इतिहास का एक प्रेरक पृष्ठ है । उनके व्यक्तित्व के इस कोण को कवि की निम्न पंक्तियों में प्रस्तुत किया जा सकता है अविकृत वदन निरंतर तुमने, पिया अमृत सम विष जो। हुआ नहीं निःशेष अभी वह, तुम्ही पिओगे इसको। उनके विराट् व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण पहलू साहित्य-सृजन है । जब वे तेरापन्थ के आचार्य रूप में प्रतिष्ठित हुए, तब हिंदी में लिखना तो दूर, बोलना भी कठिन था । पर उनकी प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से आज सैकड़ों साहित्यिक प्रतिभाएं उभर रही हैं। तेरापंथ संघ में साहित्य की अनेक विधाएं प्रस्फुटित हुई हैं, फिर भी उन्हें संतोष नहीं है। वे इस क्षेत्र में और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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