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________________ १५४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण जो शिखर पर बैठकर भी तलहटी से जुड़ा रहे । जो देश की समस्याओं से जूझने के हिमालयी संकल्प की पूर्ति के साधन जुटाता रहे और अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को भी सड़क पर फेंके गये केले के छिलकों-सी नियति न समझे । सांसदों और विधायकों का सही चयन हो इसके लिए उनका अमूल्य सुझाव है.---"राजनीति का चेहरा साफ-सुथरा रहे, इसके लिए अपेक्षित है कि इस क्षेत्र में आने वाले व्यक्तियों के चरित्र का परीक्षण हो। आई क्यू टेस्ट की तरह करेक्टर टेस्ट की कोई नई प्रविधि प्रयोग में आए।"१ ___ आचार्य तुलसी का विचार है कि लोकतंत्र में सत्ता पाने का प्रयत्न एकान्ततः बुरा नहीं है पर नैतिकता और सिद्धान्तवादिता को दूर रखकर हिंसा, उच्छृखलता द्वारा केवल सत्ता पाने का प्रयत्न जनतंत्र का कलंक है ।'' आज की दूषित राजनीति का आकलन करते हुए वे कहते हैं --"राष्ट्रहित और जनहित की महत्त्वाकांक्षा व्यक्तिहित और पार्टीहित के दबाव से नीचे बैठती जा रही है। सत्ता के स्थान पर स्वार्थ आसीन हो रहा है। जनता के दुःख-दर्द को दूर करने के वायदे चुनाव घोषणा-पत्र की स्याही सूखने से पहले विस्मृति के गले में टंग जाते हैं ।"3 राजनेताओं की सत्तालोलुपता को उन्होंने गांधी के आदर्श के समक्ष कितने तीखे व्यंग्य के साथ प्रस्तुत किया है- "गांधी ने कहा था---'मेरा ईश्वर दरिद्र-नारायणों में रहता है ।' आज यदि उनके भक्तों से यही प्रश्न पूछा जाए तो संभवतः यही उत्तर मिलेगा कि हमारा ईश्वर कुर्सी में रहता है, सत्ता में रहता है, झोपड़ी में रहने वाला ईश्वर आज प्रासाद में रहने लगा है। इससे अधिक गांधी के सिद्धान्तों का मजाक और क्या हो सकता है ?"४ चुनाव के समय होने वाले संघर्ष तथा उसके परिणामों को प्रकट कर विधायकों की ओर अंगुलिनिर्देश करने वाली उनकी निम्न टिप्पणी यथार्थ का उद्घाटन करने वाली है..."ऐसा लगता है राजनीतिज्ञ का अर्थ देश में सुव्यवस्था बनाए रखना नहीं, अपनी सत्ता और कुर्सी बनाए रखना है। राजनीतिज्ञ का अर्थ उस नीतिनिपुण व्यक्तित्व से नहीं, जो हर कीमत पर राष्ट्र की प्रगति, विकास-विस्तार और समृद्धि को सर्वोपरि महत्त्व दे, किन्तु उस विदूषक -विशारद व्यक्तित्व से है, जो राष्ट्र के विकास और समृद्धि को अवनति के गर्त में फेंककर भी अपनी कुर्सी को १. बैसाखियां विश्वास की, पृ० ९७ । २. १-३-६९ के प्रवचन से उद्धृत । ३. जैन भारती, १ फरवरी, १९७० । ४. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १८७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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