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________________ १४४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण मनुहारों में चौदह वर्ष पादुकाएं राज-सिंहासन पर प्रतिष्ठित रहीं, महावीर और बुद्ध जहां व्यक्ति का विसर्जन कर विराट बन गए, कृष्ण ने जहां कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया और गांधीजी संस्कृति के प्रतीक बनकर अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर एक आलोक छोड़ गए, उस देश में सत्ता के लिए छीना-झपटी, कुर्सी के लिए सिद्धांतों का सौदा, वैभव के लिए अपवित्र प्रतिस्पर्धा और विलाससने हाथों राष्ट्र-प्रतिमा का अनावरण हृदय में एक चुभन पैदा करता है।" वे पाश्चात्य संस्कृति की अच्छाई ग्रहण करने के विरोधी नहीं हैं पर सभी बातों में उनका अनुकरण राष्ट्र के हित में नहीं मानते । उनका चिंतन है कि पाश्चात्य संस्कृति का आयात हिंदू संस्कृति के पवित्र माथे पर एक ऐसा धब्बा है, जिसे छुड़ाने के लिए पूरी जीवन-शैली को बदलने की अपेक्षा है । वे विदेशी प्रभाव में रंगे भारतीय लोगों को यहां तक चेतावनी दे चुके हैं- "हिन्दू संस्कारों की जमीन छोड़कर आयातित संस्कृति के आसमान में उड़ने वाले लोग दो चार लम्बी उड़ानों के बाद जब अपनी जमीन पर उतरने या चलने का सपना देखेंगे तो उनके सामने अनेक प्रकार की मुसीबतें खड़ी हो जाएंगी। भारतीय संस्कृति प्रकृति में जीने की संस्कृति है पर विज्ञान ने आज मनुष्य को प्रकृति से दूर कर दिया है। प्रकृति से दूर होने का एक निमित्त वे टेलीविजन को मानते हैं । भारतीय जीवन-शैली में दूरदर्शन के बढ़ते प्रभाव से वे अत्यंत चिन्तित हैं। इससे होने वाले खतरों की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट करते हुए उनका कहना है "टी०वी० इस युग की संस्कृति है । पर इसने सांस्कृतिक मूल्यों पर पर्दा डाल दिया है और पारिवारिक संबंधों की मधुरिमा में जहर घोल दिया है । यह जहर घुली संस्कृति मनुष्य के लिए सबसे बड़ी त्रासदी है । ......."टी०वी० की संस्कृति शोषण की संस्कृति है । यह चुपचाप आती है और व्यक्ति को खाली कर चली जाती है। .... मैं मानता हूं कि टी०वी० की संस्कृति से उपजी हुई विकृति मनुष्य को सुखलिप्सु और स्वार्थी बना रही है ।13 इन उद्धरणों से उनके कथन का तात्पर्य यह नहीं निकाला जा सकता कि वे आधुनिक मनोरंजन के साधनों के विरोधी हैं। निम्न उद्धरण के आलोक में उनके संतुलित एवं सटीक विचारों को परखा जा सकता हैआधुनिक मनोरंजन के साधनों की उपयोगिता के आगे प्रश्नचिह्न लगाना १. राजपथ की खोज, पृ० १३७ । २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १६८० । ३. कुहासे में उगता सूरज, पृ० ४२,४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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