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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन जितने शुद्ध होते हैं, समूह के स्तर पर भी उतने ही शुद्ध हो सकते हैं। सामूहिक अभ्यास से उस शुद्धता में तेजस्विता और अधिक निखर आती है।" अहिंसा को प्रायोगिक बनाने के लिए वे अपनी भावना प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-"मैं चाहता हूं कि एक शक्तिशाली अहिंसक सेना का निर्माण हो । वह सेना राजनीति के प्रभाव से सर्वथा अछूती रहे, यह आवश्यक है।" मेरी दृष्टि में इस अहिंसक सेना में पांच तत्त्व मुख्य होंगे-- १. समर्पण--अपने कर्तव्य के लिए जीवन की आहुति देनी पड़े तो __ भी तैयार रहें। २. शक्ति--परस्पर एकता हो। ३. संगठन--संगठन में इतनी दृढ़ता हो कि एक ही आह्वान पर हजारों व्यक्ति तैयार हो जाएं। ४. सेवा--एक दूसरे के प्रति निरपेक्ष न रहें। ५. अनुशासन--परेड में सैनिकों की तरह चुस्त अनुशासन हो।' अहिंसक क्रांति संसार में अन्याय, शोषण एवं अनाचार के विरुद्ध समय-समय पर क्रांतियां होती रही हैं पर उनका साधन विशुद्ध नहीं रहने से उनका दीर्घकालीन परिणाम सन्दिग्ध हो गया। आचार्य तुलसी स्पष्ट कहते हैं कि क्रांति की सफलता और स्थायित्व मैं केवल अहिंसा में ही देखता हूं। हिंसक क्रांति से शांति और समता आ जाएगी, यह दुराशामात्र है। यदि आ भी जाएगी तो वह चिरस्थायी नहीं होगी। उसकी तह में अशांति और वैमनस्य की ज्वाला धधकती रहेगी। अहिंसक क्रांति से उनका तात्पर्य है बिना कोई रक्तपात, हिंसा, युद्ध और शस्त्रास्त्र के सहयोग से होने वाली क्रांति । उनका यह अटूट विश्वास है कि भौतिक साधनों से नहीं, अपितु प्रेम की शक्ति से ही अहिंसक क्रांति सम्भव है। अहिंसक क्रांति के सफल न होने का सबसे बड़ा कारण वे मानते हैं कि हिंसात्मक क्रांति करने वालों की तोड़-फोड़ के साधनों में जितनी श्रद्धा होती है, उतनी श्रद्धा अहिंसात्मक क्रांति वालों को अपने शांति-साधनों में नहीं होती ।......"अहिंसात्मक क्रांति को सफल होना है तो उसमें प्रतिरोधात्मक शक्ति पैदा करनी होगी। इस दृढ़ निष्ठा से ही अहिंसा तेजस्वी एवं सफल हो सकती है। १. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १५५ । २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७३४ । ३. बेंगलोर १६-९-६९ के प्रवचन से उद्धृत। ४. प्रवचन पाथेय भाग-९, पृ० २६५ । ५. गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का, पृ० २५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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