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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन वातावरण के साथ भी है ? • आतंक या हिंसा की स्थिति को शांत करने के लिए कहीं अहिंसा का प्रयोग हुआ ? अहिंसा को न मारने तक ही सीमित रखा गया है अथवा उसकी जड़ें अधिक गहरी हैं । o • कहा जाता है कि अहिंसक व्यक्ति के सामने हिंसक व्यक्ति हिंसा को भूल जाता है, यह विश्वसनीय सचाई है या मिथ्या ही है ? • हिंसा के विकल्प अधिक हैं, इसलिए उसके रास्ते भी अधिक हैं | अहिंसा के विकल्प और रास्ते कितने हो सकते हैं ? शस्त्र - हिंसा में परम्परा चलती है तो फिर अशस्त्र अहिंसा में परम्परा क्यों नहीं चलती ? किसी व्यक्ति को अपने विरोध में शस्त्र का प्रयोग करते देख प्रतिरोध की भावना जागती है इसी प्रकार o अहिंसक व्यक्ति की मैत्री भावना का भी प्रभाव होता है क्या ? इसी प्रकार के तथ्यों को सामने रखकर अहिंसा के क्षेत्र में शोध हो तो कुछ नयी बातें प्रकाश में आ सकती हैं और अहिंसा की तेजस्विता स्वतः उजागर हो सकती है । ' अहिंसा की प्रतिष्ठा में चौथी बाधा आत्म-तुला की भावना का विकास न होना है । वे अपनी अनुभवपूत वाणी इस भाषा में प्रस्तुत करते हैं - "अहिंसा के जगत् में इस चिन्तन की कोई भाषा ही नहीं होती कि मैं ही बचूंगा या अंतिम जीत मेरी ही हो। वहां की भाषा यही होती है - अपने अस्तित्व में सब हों और सबके अस्तित्व का विकास हो । " अहिंसा की प्रतिष्ठा के विषय में उनके विचारों का निष्कर्ष इस भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है- "जब तक मस्तिष्क प्रशिक्षित नहीं होगा, वहां रहे हुए हिंसा के संस्कार सक्रिय रहेंगे उन संस्कारों को निष्क्रिय किए बिना केवल संगोष्ठियों और नारों से अनंत काल तक भी अहिंसा की प्रतिष्ठा नहीं हो सकेगी। यदि अहिंसक शक्तियां संगठित होकर अहिंसा के क्षेत्र में रिसर्च करें, अहिंसा प्रधान जीवन-शैली का प्रशिक्षण दें और हिंसा के मुकाबले में अहिंसा का प्रयोग करें तो निश्चित रूप से अहिंसा का वर्चस्व स्थापित हो सकता है ।" મ अहिंसा का प्रयोग ९१ धर्मशास्त्रों में अहिंसा की महिमा के व्याख्यान में हजारों पृष्ठ भरे १. सफर : आधी शताब्दी का, पृ० ५९ २. मेरा धर्म : केंद्र और परिधि पृ० ६५ ३. अणुव्रत पाक्षिक १६ अग०, ८८ ४. कुहासे में उगता सूरज पृ० २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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