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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन दे । कोई किसी को जिला सके, यह सर्वथा असम्भव बात है । पर कोई किसी को मारे नहीं, यह अहिंसा और मैत्री का व्यावहारिक एवं सम्भावित रूप है।' इसी बात को रूपक के माध्यम से समझाते हुए वे कहते हैं-पड़ोसी को दुगंध न आए, इसलिए हम घर को साफ-सुथरा बनाये रखें, यह सही बात नहीं है । दूसरों को कष्ट न हो इसलिए हम अहिंसक रहें, अहिंसा का यह सही मार्ग नहीं है। आत्मा का पतन न हो, इसलिए हिंसा न करें, यह है अहिंसा का सही मार्ग । कष्ट का बचाव तो स्वयं हो जाता अहिंसक कौन ? __ अहिंसक कौन हो सकता है, इस विषय में भारतीय मनीषियों ने पर्याप्त चिन्तन किया है। आचार्य तुलसी मानते हैं कि अहिंसा की जय बोलने वाले तथा उसकी महिमा का बखान करने वाले अनेक अहिंसक मिल जाएंगे पर वास्तव में अहिंसा को जीन वाले कम मिलेंगे। अतः अनेक बार दृढ़तापूर्वक वे इस तथ्य को दोहराते हैं-"अहिंसा को जितना खतरा तथाकथित अहिंसकों से है, उतना हिंसकों से नहीं। अहिंसकों का वंचनापूर्ण व्यवहार तथा उनकी कथनी और करनी में असमानता ही अहिंसा पर कुठराघात है।' आचार्यश्री ने विभिन्न कोणों से अहिंसक की विशेषताओं का आकलन किया है, उनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं--- ० मौत के पास आने पर जो धैर्य से उसका आह्वान करे, वही सच्चा अहिंसक हो सकता है। ० अहिंसक व्यक्ति हर परिस्थिति में शांत रहता है ! उसका अन्तःकरण शीतलता की लहरों पर क्रीड़ा करता रहता है। ० अहिंसक वही है, जो मारने की क्षमता रखता हुआ भी मारता नहीं है। ० अहिंसक वही हो सकता है, जिसकी दृष्टि बाह्य भेदों को पार कर आंतरिक समानता को देखती रहती है। ० अहिंसक सच्चा वीर होता है । वह स्वयं मरकर दूसरे की वृत्ति ___ बदल देता है, हृदय परिवतित कर देता है ।। ० यदि हिंसक शक्तियों का मुकाबला करने में अहिंसा असमर्थ है तो मैं इसे अहिंसकों की दुर्बलता ही मानूंगा । १. प्रवचन पाथेय, भाग ८, पृ० २९,३० । २. आचार्य तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ९८ ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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