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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण भाषा शैली सत्य की अभिव्यंजना तथा अन्तर्जगत् को प्रकट करने का एकमात्र साधन भाषा है। यदि इसके बिना भी हम अपने भावों को एक-दूसरे तक पहुंचा सकें तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं रहती पर यह हमारे भावों का अनुवाद दूसरों तक पहुंचाती है अतः मनुष्य के हर प्रयत्न के अध्ययन में भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है । भाषा के बारे में आचार्य तुलसी का अभिमत है-- "भाषा के मूल्य से भी अधिक महत्त्व उसमें निबद्ध ज्ञान राशि का है, जो मानवीय विचार धारा में एक अभिनव चेतना और स्फूर्ति प्रदान करती है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन है, साध्य नहीं।" भाषा के बारे में जैनेन्द्रजी का मंतव्य बहुत स्पष्ट एवं मननीय है"मेरी मान्यता है कि भाषा स्वयं कुछ रहे ही नहीं, केवल भावों की अभिव्यक्ति के लिए हो। भाव के साथ वह इतनी तद्गत हो कि तनिक भी न कहा जा सके कि भाव उसके आश्रित हैं। अर्थात् भाव उसमें से पाठक को ऐसा सीधा मिले कि बीच में लेने के लिए कहीं भाषा का अस्तित्व रहा है, यह अनुभव न हो।'' अतः भाषा की सफलता बनाव शृंगार में नहीं, अपितु भावानुरूप अर्थाभिव्यक्ति में है। आचार्य तुलसी की भाषा इस निकष पर खरी उतरती है । वे जनता के लिए बोलते या लिखते हैं अतः हर स्थिति में उनकी भाषा सहज, सरल, व्यापक, हार्दिक, सुबोध एवं सशक्त है । भाषा की बोधगम्यता के पीछे उनकी साधना की शक्ति बोलती है-निर्ग्रन्थ व्यक्तित्व मुखर होता है। उनकी भाषा मात्मा से निकलती है और दूसरों को भी आत्मदर्शन की ताकत देती है। इस बात की पुष्टि हजारीप्रसाद द्विवेदी भी करते हैं-- "गहन साधना के बिना भाषा सहज नहीं हो सकती। यह सहज भाषा व्याकरण और भाषाशास्त्र के अध्ययन से भी प्राप्त नहीं की जा सकती, कोशों में प्रयुक्त शब्दों के अनुपात में इसे नहीं गढ़ा जा सकता।" कबीर, रहीम, राजिया और आचार्य भिक्षु आदि को यह भाषा मिली और इसी परंपरा में आचार्य तुलसी का नाम भी स्वतः जुड़ जाता है। उनकी भाषा आकर्षक एवं प्रसाद गुण-सम्पन्न है। इसका कारण है। कि जो उनके भीतर है, वही बाहर आता है । मैथिलीशरण गुप्त इस मत की १. साहित्य का श्रेय और प्रेय, पृ० १४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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