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________________ हो? सुधार से धार्मिक बनने में सहयोग मिलता है। समाज की व्यवस्था खराब होने से नीचे जाने का मौका मिलता है। समाज में हर आदमी ऐसा नहीं होता, जो हर परिस्थिति को सहकर भी नैतिक बना रहे। बाह्य निमित्तों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। जिसके परिवार में उठने से लेकर सोने तक लड़ाई चलती रहती है, वह क्या सामायिक करेगा? यदि करेगा तो भी सामायिक में वही चिन्तन करेगा। वास्तव में वह केवल मुंह बांध सकता है, पर सामायिक नहीं हो पाता। समाज के लोगों को सोचना चाहिए। समाज की बुराई सब में संक्रांत हो गई। उससे कोई नहीं बच सकता। कोई माने कि मैं बच सकता हूं तो वज्र भूल होगी। इससे बचने के लिए समय पर सोचना होगा। जीवन का क्रम सरल होना चाहिए, जटिलता छूटनी चाहिए। कठिनाई यह है कि जो सम्पन्न वर्ग है, वह सोचता है-अपना काम ठीक चलता है, हम क्यों सोचें? दूसरा गरीब वर्ग है, वह सोचता है-वे इतना करते हैं, हम नहीं करेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा। यह उनके चिन्तन का दोष है। प्राचीन आचार्यों ने श्रावक के इक्कीस गुण बताए हैं। उनमें एक है-व्ययः आयोचितं कुर्यात्-व्यय आय के अनुकूल करे। आय का कुछ भाग अपने लिए बचाकर रख दे, जो बुढ़ापा या बीमारी में काम आए। शेष जीवन में अनुताप न करना पड़े। सिर पर ऋण का भार न रहे। ऋण को छोटा समझना मूर्खता है। ऋण कम है, व्रण छोटा है, अग्नि कम है और वैर थोड़ा-सा है-इनको छोटा समझना अज्ञान है। ये छोटे होते ही नहीं। गुरुदेव भी अपना अमूल्य समय बुराइयों को मिटाने के धर्म की तीसरी कक्षा-व्रती बनना . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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