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________________ श्रद्धा का अर्थ है-विश्वास। मैं सोचता हूं, जिसको मैं नहीं जानता, उसके प्रति विश्वास कैसे हो सकता है? । मेवाड़ का एक व्यक्ति सुजानगढ़ में आया। जिस घर में ठहरा, उन्होंने आतिथ्य-सत्कार किया। भोजन में खीर पर पिस्ता और बादाम की करतन डाली गई थी। उस भाई ने कभी देखा नहीं था, इसलिए उसने लटें (जीव) समझ चुन-चुनकर सबको निकाल दिया। बादाम की कतरन को यदि उसने लटें समझा तो उसका दोष नहीं, क्योंकि वह जानता नहीं था। जिस विषय में आपने जाना नहीं, सुना नहीं, उस पर श्रद्धा नहीं होती। श्रद्धा है, ज्ञान के बाद होने वाली मन की धृति। बहुत-से फूल विदेशों में होते हैं। उनके बारे में आप जानते नहीं, तब उनको लेने की मन में भावना नहीं जगेगी। नई वस्तु को देखने से मन में आशंका होती है। पहले पहल जब रेल आई थी, तब लोग अपरिचित होने के कारण आशंकित थे। कई लोगों ने तो अपने गांव के पास से होकर रेल निकालने का विरोध किया। आज वे पश्चात्ताप कर रहे हैं। ऐसा क्यों हुआ? अज्ञान के कारण हुआ। कोई भी नई चीज आती है तो वह सहज ही स्वीकार्य नहीं होती। फिर वह चाहे अच्छी हो या बुरी, उपयोगी हो या अनुपयोगी। नई वस्तु गृहीत नहीं होती। गुरुदेव जब दिल्ली में थे तो अणुव्रतों का विरोध चल रहा था। जैन लोग कहते थे कि गुरुदेव ने मिथ्यादृष्टि और सम्यक्दृष्टि को एक कर दिया है। अजैन लोग इसलिए विरोध करते थे कि ये अणुव्रत के सहारे सबको जैन बना लेंगे। अनुभवी पत्रकार श्री सत्यदेवजी विद्यालंकार ने गुरुदेव से कहा था-गुरुदेव! आस्तिक्य ७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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