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________________ सहानुभूति, वात्सल्य बना रहे, उपेक्षा न रहे। यह न सोचे कि जो बीमार है, वह अपना कर्म भोगेगा, हमें उससे क्या! जैन धर्म को मानने वाले लोग जब अपने बूढ़े माता-पिता के प्रति क्रूर व्यवहार करते हैं तब लगता है उन्होंने जैन धर्म के मर्म को नहीं समझा है। क्रूरता के पनपने के पीछे दो कारण हैं-स्वार्थ और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण। जिसके प्रति आकर्षण या प्रेम होता है, उसके प्रति दया या सज्जनता का व्यवहार करना स्वार्थ का प्रदर्शन है, करुणा नहीं। हृदय की कोमलता यह नहीं देखती कि यह अपना है या पराया है। वैसा कोमल व्यक्ति किसी के प्रति अन्याय नहीं देख सकता, विरोधी के हितों का भी शोषण नहीं कर सकता, बुरे तरीकों से धनार्जन कर दूसरों को धोखा नहीं दे सकता। आज जैन समाज पर आरोप आता है कि वह अहिंसा को मानता है, फिर भी व्यापार में अनैतिकता करता है। देहली में एक बार गुरुदेव तुलसी को डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था-दूसरों को अणुव्रती बनाएं या न बनाएं, पर जैन लोगों का दृष्टिकोण बदल दीजिए, वे अनैतिकता न करें। भारत में जैनों का बहुत बड़ा समाज है। ___ स्वार्थ विघटित होता है, फिर भी अहिंसा खंडित नहीं होती तब समझना चाहिए हमारी वृत्ति में करुणा आई है। स्वार्थ छोड़ दें, पर करुणा नहीं छोड़ें। ___ आदमी बुरा ही नहीं होता। हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई-दोनों होती हैं। अच्छे दीखने वाले व्यक्ति में भी बुराई के बीज छिपे रहते हैं। बुरे दीखने वाले में भी अच्छाई रहती है। डाकू में भी भलाई के बीज प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। अंगुलिमाल ६६ म धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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