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________________ सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र। सम्यक् के बिना ज्ञान, दर्शन और आचरण का कोई महत्त्व नहीं है। ज्ञान मोक्ष का मार्ग नहीं है, दर्शन मोक्ष का मार्ग नहीं है। चारित्र मोक्ष का मार्ग नहीं है। सम्यक् विशेषण के बिना ये कामकर नहीं बनते। इनको सम्यक् बनाने का उपाय है-तपस्या, ध्यान और स्वाध्याय। आज लोगों में स्वाध्याय का अभ्यास कम है, पढ़ते कम हैं। भिक्षु स्वामी जैसा सहज ज्ञान सबका नहीं होता। प्रोफेसर प्रेमसुमनजी ने कहा था, “गुरुदेव तुलसी के संघ ने जो साहित्य दिया है; उतना किसी संघ ने नहीं दिया। 'मैं, मेरा मन, मेरी शान्ति' यदि इस पुस्तक को युवक लोग पढ़ लें तो उनके कई प्रश्न स्वयं मिट जाएंगे।" यह पुस्तक आचार्य महाप्रज्ञ की है। कठिनाई यह है कि अपने श्रावक साहित्य से उतना लाभ नहीं उठाते, जितना अजैन लोग उठाते हैं। अपने साहित्य का विद्वान् लोग पूरा-पूरा प्रयोग करते हैं। परन्तु अपने श्रावक समाज को जानकारी भी नहीं है। प्रमाद है या मूर्छा है, पता नहीं, लेकिन पढ़ते तो नहीं हैं। यह अच्छा नहीं है। हम सोचते हैं, हमारे समाज का भी विकास हो। वे नये युग की नई दृष्टि को समझें। गुरुदेव दिल्ली में थे। उस समय डॉ. शतकौड़ी मुकर्जी आए, जिनके बीसों ही छात्र प्रिंसिपल हैं। वे अंग्रेजी में ही लिखते हैं। उनका साहित्य भारत से बाहर अधिक चलता है। गुरुदेव ने मुझे फरमाया-“इनको जैन सिद्धान्त दीपिका सुना दो।" मैंने उनको वह ग्रन्थ सुनाया। दान-दया का सिद्धान्त सुनकर वे बोले-“यह दुर्भाग्य था कि भिक्षु स्वामी मारवाड़ के जन्मे, वे जर्मन में जन्म लेते तो काण्ट से भी अधिक मूल्यवान् होते। Jain Education International For IP साधन-तभर GTA5,y.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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