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________________ बनाना चाहता है। मेरा घर पहले से बना हुआ है और वह बना रहेगा, उसे मिटाने वाला कोई नहीं है। घर वह बनाए, जिसका घर नहीं है या मिट गया है। मुझे बनाने की जरूरत नहीं है।' यह था उनके समर्पण और आत्म-विश्वास का उत्तर। यह था धर्म की आस्था का उत्तर। यह है 'धर्म आवश्यक क्यों है' का उत्तर। कोरा सुनना वैसा है, जैसा खाना। खाने की अपेक्षा पचाने का मूल्य अधिक है। खाने का मूल्य २ पैसा है और पचाने का मूल्य ६८ पैसा है। एक विचारक ने कहा है आदमी खाने से पुष्ट नहीं बनता, पचाने से पुष्ट होता है। पढ़ने से विद्वान् नहीं बनता, याद रखने से विद्वान् बनता है। आदमी कमाने से धनवान् नहीं बनता, बचाने से धनवान् बनता है। बहुत खाने वाले, बहुत भूलने वाले और बहुत व्यय करने वाले पुष्ट, विद्वान् और धनवान् नहीं बन सकते। सुनना, मनन करना और निदिध्यासन करना विकास का क्रम है। भस्म रोग में चाहे जितना खा लो, सब स्वाहा हो जाएगा। वैसे ही केवल सुनते जाओ, सब स्वाहा हो जाएगा। सुनने के बाद मनन करना आवश्यक है। मैं प्रतिदिन कुछ-न-कुछ पढ़ता हूं, थोड़ा लिखता हूं। मेरा विश्वास है, जो पढ़ा जाए, उस पर स्वतन्त्रता से विचार किया जाए। 'बाबा वाक्यं प्रमाणं' की तरह नहीं होना चाहिए। नींद लेने वाले या मूर्छित चेतना वाले व्यक्ति सब कुछ प्रमाण मान लेते हैं, किंतु जीवित व्यक्ति वैसा नहीं करता। स्वामीजी के पास आसोजी श्रावक सामायिक कर रहे थे। धर्म है आंतरिक संपदा म ३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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