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________________ हैं?' कार्यकर्ताओं ने कहा- 'नहीं, हम कामरेड यशपाल के पास आए हैं ।' फिर वे आचार्यश्री के पास आए । आत्मा पर तीन दिन तक चर्चा चलती रही । जैन धर्म को पढ़ने की उन्होंने अपनी भावना व्यक्त की। उनसे एक संबंध-सा बन गया । जब आचार्यश्री का धवल समारोह का पहला चरण बीदासर में मनाया गया उस अवसर पर वे 'झूठा सच' नामक अपना उपन्यास भेंट करने के लिए लखनऊ से आये । गुरुदेव ने तेरापन्थ की सीमा को इतना विस्तार दे दिया है कि अजैन भी अजैन नहीं लगते। उन्होंने धर्म को युग की वेदी पर खड़ा कर दिया जिससे सारे सम्प्रदाय लाभान्वित हुए हैं । गुरुदेव जब दक्षिण यात्रा पर थे तब लोगों ने कहा- हमारे यहां अनेक आचार्य आए हैं, पर मानवता की बात करने वाला पहला आचार्य आया है । सब धर्मगुरु अपने - अपने सम्प्रदाय की बात करते हैं, परन्तु सम्प्रदाय से दूर रहकर मानवता की बात करने वाला पहला आचार्य आया है। वहां कोई भी जैन नहीं था फिर भी नहीं लगता था कि वे जैन नहीं हैं। धर्म के क्षेत्र में गुरुदेव ने क्रांति की है। उन्होंने अपने शिष्यों में निष्पक्षता व तटस्थता की बात जंचा दी, जिससे उनमें सम्प्रदाय की बू नहीं आ सकती । दर्शन के क्षेत्र में भी नए मूल्यों को प्रस्तुत किया है। लाखों-लाखों लोगों से सम्पर्क बना है। इस दिशा में गुरुदेव और उनके शिष्यों ने भागीरथ प्रयत्न किए हैं। परिणाम यह आया कि जो नजदीक थे वे दूर हो गए और जो दूर खड़े थे वे निकट आ गए। आप जानते हैं, महापुरुष कभी लकीर पर नहीं चलते। परम्परा का अनुगमन करने वाले सब होते Jain Education International धर्म की व्याख्या २६ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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