SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोची जाती है। भगवान महावीर ने कहा है-धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई-धर्म पवित्र आत्मा में ठहरता है। जहां मन की पवित्रता नहीं है, वाणी की पवित्रता नहीं है, विचारों की पवित्रता नहीं है, वहां धर्म नहीं ठहरता। सरल और शुद्ध हृदय में ही धर्म का वास होता है। भगवान महावीर ने कहा जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राइणो। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइणो। जो रात बीतती है, वह वापस नहीं आती। अधर्म करने वाले की रातें विफल हो जाती हैं। जो रात बीतती है, वह वापस नहीं आती। धर्म करने वालों की रातें सफल होती हैं। फ्रांसीसी कलाकार ने काल-देवता की एक प्रतिमा बनाई। उसके सिर के अगले भाग में केशों का गुच्छा दिखाया गया और पीछे के भाग में उसे गंजा दिखाया गया। इसका तात्पर्य यह है कि काल सामने से आता है, उसे पकड़ना चाहो तो पकड़ लो, अन्यथा भागने पर वह पीछे से पकड़ में नहीं आएगा। धर्म की बात सुनते हैं, उसकी महिमा सुनते हैं। इतने वर्षों से उसका पालन कर रहे हैं, फिर भी आदेश मिलता है-धर्म करो। तब प्रश्न उठता है-वह धर्म क्या है? भगवान महावीर की वाणी में उसका उत्तर है-अहिंसा धर्म है, संयम धर्म है और तप धर्म है। १२ म धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy