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________________ से की जाने वाली हिंसा अर्थहिंसा है। निष्प्रयोजन से की जाने वाली हिंसा अनर्थहिंसा है। धर्म कहता है-हिंसा मत करो। उससे दुःख पैदा होता है। खेती, व्यापार का काम, ब्याज आदि सब हिंसा है। लोग ब्याज को अहिंसा का व्यापार मानते हैं। आचार्य जिनसेन ने ब्याज को बड़ी हिंसा माना है। ब्याज आर्त्त और रौद्र ध्यान का बहुत बड़ा कारण है। हमारी दृष्टि ऐसी हो गयी है कि हम दृश्य हिंसा को ही हिंसा मानते हैं। मूल हिंसा आर्त्त और रौद्र ध्यान है। ब्याज में मानसिक हिंसा चलती है। प्रश्न उठता है-सब जगह हिंसा है तब हम क्या करें? क्या जंगल में चले जाएं? कहीं पर भी चले जाओ, यदि मन में हिंसा है तो जंगल में चले जाने से अहिंसा नहीं होगी। अर्थहिंसा मनुष्य छोड़ नहीं सकता, क्योंकि बिना अर्जन किए परिवार का काम नहीं चल सकता। परन्तु अनर्थहिंसा तो आवश्यक नहीं है, उसे छोड़ा जा सकता है। भगवान महावीर ने अव्यावहारिक बात नहीं कही कि तुम धार्मिक बनते हो तो व्यापार बन्द कर दो। उन्होंने कहा-व्यापार में अनावश्यक हिंसा मत करो। यह सम्भाव्य बात है। जैन श्रावकों का जीवन इसी आधार पर बीता था। गुजरात में एक सेनापति जैन था। राजा कार्य से बाहर गया था। शत्रु ने अवसर देख आक्रमण कर दिया। रानी को पता चला। सेनापति को बुलाया। 'रण में मैं चलूंगी।' सेनापति ने कहा-'नहीं, आप तो हमें आदेश दें।' आदेश ले सेनापति युद्धस्थल में चला गया सूर्यास्त हो गया, इसलिए लड़ाई न हो सकी। सुबह लड़ाई शुरू होने वाली थी। प्रतिक्रमण का समय आया तो सेनापति ने प्रतिक्रमण किया-एगिदिया, बेइंदिया समाज के परिप्रेक्ष्य में अर्थहिंसा और अनर्थहिंसा म १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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