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________________ करें। यदि आप किसी को कहेंगे-तू पगाल है, गुस्सा अधिक करता है, तो वह कहेगा तू आलसी है, काम कम करता है। कोई क्रोध में बोले तो उस समय मौन होना अच्छा है। क्रोध में बोलने वाले के सामने बोलने से उसका गुस्सा तेज हो जाता है। उस समय शान्त रहने से उसकी ताकत घट जाती है। एक व्यक्ति गुस्सा करता है, शेष सब सोच लें कि गुस्सा करना इसकी दुर्बलता है। यदि दुर्बलता को सामने बोलकर प्रोत्साहन न दिया जाए तो वह स्वयं शान्त हो जाएगा। अतृणे पतितो वहिः, स्वयमेवोपशाम्यति-घासरहित स्थान पर होने वाली अग्नि स्वयं शान्त हो जाती है। वैसे प्रतिवचन का ईंधन न मिलने से क्रोध स्वयं शान्त हो जाता है। क्रोध को विफल करने का सरल साधन है-मौन। इस प्रकार एक-एक व्यक्ति की दुर्बलता को समझ लें। सब समान नहीं हो सकते। समानता की भी एक सीमा है। समानता का अर्थ जड़ता नहीं है। क्या हम अंधकार और प्रकाश को एक समान मानें? यह मानेंगे तो हमारा अविवेक होगा। अंधकार में हो सकता है, प्रकाश में नहीं। जिसके ज्ञान-चक्षु नहीं खुले हैं उसके लिए सब समान हैं। एक दिन एक कवि ने कहा मूर्खत्वं हि सखे! ममापिरुचितं यस्मिन् यदष्टौ गुणाः, निश्चितो बहुभोजनोऽत्रपमनाः नक्तं दिवा शायकः ॥ कार्याकार्यविचारणान्धबधिरो मानापमाने समः । प्रायेणामयवर्जितो दृढवपुः मूर्खः सुखं जीवति ॥ मूर्ख में आठ गुण होते हैं जीवन में अहिंसा का रूप में १७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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