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________________ अप्पाण उ' - जहां-तहां देखता हूं वहां आत्मा ही आत्मा है । आगे देखता हूं तो आत्मा है। दाएं देखता हूं तो आत्मा है। बाएं देखता हूं तो आत्मा है । ऊपर देखता हूं तो आत्मा है 1 नीचे देखता हूं तो आत्मा है । सर्वत्र आत्मा ही आत्मा है। क्या यह पागलपन है? सब जगह एक-सा रूप कैसे दिखाई दे ? दक्षिण यात्रा के दौरान हमने एक स्थान पर देखा कि दर्पणों की विचित्रता से एक व्यक्ति के बहुत रूप दिखाई देते थे । एक ही आत्मा में छहों कारक घटित होते हैं 1 ध्यान - आत्मा । ध्यान का प्राप्य - आत्मा । ध्यान का साधन - आत्मा । ध्यान किसके लिए - आत्मा के लिए । ध्यान किससे - आत्मा से । ध्यान किसमें -- आत्मा में । आत्मा को जानना ही धर्म है । जितनी जानकारी होती है, उतना ही धर्म दूर होता है । आत्मा को जानना सम्यक् ज्ञान, आत्मा पर श्रद्धा करना सम्यक् दर्शन, आत्मा में रमण करना सम्यक् चरित्र है । आचार्य कुंदकुंद और अमृतचन्द्र ने यही परिभाषा दी है - आत्मा को जानना, देखना और रमण करना सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चरित्र है । I आत्मा अमूर्त है । उस पर आवरण आ गया है। जहां भोग है वहां अलेप है, अभोग है वहां लेप छूट जाता है । भोगी संसार में भ्रमण करता है, उपभोगी संसार से मुक्त हो जाता है । इस उदाहरण से समझना है। मिट्टी का गोला भींत पर फेंकने से चिपक जाता है। सूखा गोला स्पर्श कर नीचे Jain Education International धर्म और रूढ़िवाद १४१ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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