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________________ प्रामाणिकता का मूल्य 'तिष्ठेद् वायुः द्रवेदद्रिः, ज्वलेत् जलमपि क्वचित्। तथापि ग्रस्तो रागाथै प्तो भवितुमर्हति ॥' भगवन्! आप आप्त हैं इसलिए मैं नमस्कार करता हूं। तर्कशास्त्र का एक शब्द आप्त है, आप्त यानी प्रामाणिक। सत्य बोलने वाले का हर व्यक्ति विश्वास कर सकता है। आप्त कौन? जो राग-द्वेष से ग्रस्त नहीं है। आचार्य ने लिखा है-वायु हमेशा चलती है, कभी वह भी ठहर जाए; पहाड़ कठोर होता है, कभी वह भी तरल हो जाए; पानी ठंडा होता है, कभी वह भी जलने लग जाए; यह सब हो सकता है, पर राग-द्वेष से ग्रस्त कभी आप्त नहीं हो सकता। दुनिया में सबसे बड़ी चीज है प्रामाणिकता। जिसमें प्रामाणिकता नहीं, वह धार्मिक नहीं हो सकता। धर्म का मूल है-प्रामाणिकता, सचाई। भगवान महावीर ने कहा-'सच्चं भयवं' सत्य ही भगवान है। जैसा कहना वैसा ही आचरण करना, सत्य है। तराजू कभी पक्षपात नहीं करता। मीटर से कपड़े का नाप ठीक मिलता है। घड़ी से अप्रामाणिकता न चाहने वाला यदि. अपने जीवन में अप्रामाणिकता बरतता है, तो वह कितना बड़ा धोखा है। जिसने धर्म को थोड़ा-बहुत समझा है, वह अपने जवीन में प्रामाणिकता Jain art For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003116
Book TitleDharma ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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