SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८/भगवान् महावीर प्रतिपादन किया। सुधर्मा के उपस्थित होने पर भगवान् ने जन्म-वैचित्र्य का निरूपण किया। 'सुधर्मा! तुम जानते हो कि जीव वर्तमान जन्म में जैसा होता है वैसा ही अगले जन्म में हो जाता है। मनुष्य मरने के बाद मनुष्य होता है, पशु मरने के बाद पशु। किन्तु यह मत सही नहीं है। मनुष्य या पशु होने का हेतु मनुष्य या पशु का जन्म नहीं है, किन्तु कर्म है। माया, प्रवंचना और असत्य वचन का प्रयोग करने वाला मनुष्य पशु बनता है। मनुष्य मृत्यु के बाद फिर मनुष्य बन सकता है, जो प्रकृति से भद्र, विनम्र, दयालु और ईर्ष्यारहित होता है।' मंडित के सामने भगवान् ने बन्ध और मोक्ष की व्याख्या की। उन्होंने कहा-'मंडित! जीव के कर्म का बंध होता है। वह सादि है या अनादि-यह प्रश्न तुम्हें आन्दोलित कर रहा है। तुम्हारा तर्क है कि यदि वह सादि है तो विकल्पत्रयी के व्यूह को तोड़ा नहीं जा सकता।' पहला विकल्प-क्या पहले जीव उत्पन्न होता है और पीछे कर्म?' दूसरा विकल्प-क्या पहले कर्म उत्पन्न होता है और पीछे जीव?' तीसरा विकल्प-क्या जीव और कर्म दोनों एक साथ उत्पन्न होते यदि बन्ध अनादि है तो उससे मुक्ति नहीं पाई जा सकती, जीव का मोक्ष नहीं हो सकता। आर्य मंडित! तुम एकांगी दृष्टि से देखते हो इसलिए ये उलझनें तुम्हें आन्दोलित कर रही हैं। तुम अनेकान्त दृष्टि से देखो, कोई उलझन नहीं है। जीव और कर्म का संबंध आदि भी है और अनादि भी है। ऐसा कोई समय नहीं जब जीव के कर्म का बन्धन नहीं था। किन्तु पुराने कर्म फल देकर चले जाते हैं और नए-नए कर्म-परमाणुओं का संबंध होता रहता है, अत: प्रवाह रूप से कर्म-सम्बन्ध अनादि है और व्यक्तिश: वह सादि है।' । भगवान् ने मौर्य और अकंपित के सामने क्रमश: देव और नारक के अस्तित्व की व्याख्या की। अचलभ्राता के उपस्थित होने पर भगवान् ने पुण्य और पाप का निरूपण किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003115
Book TitleBhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Principle
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy