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________________ कैवल्य और धर्मोपदेश/४१ जानने-देखने की उनकी क्षमता प्रकट हो गई। अब उन्हें बोलने का अधिकार प्राप्त हो गया। प्रथम प्रवचन चतुरंग मार्ग भगवान् ने कैवल्य प्राप्त कर पहला प्रवचन किया। उसमें भगवान् ने आत्म-साक्षात्कार के चतुरंग मार्ग का प्रतिपादन किया १. सम्यग् दर्शन-यर्थाथ पर आस्था केन्द्रित करना। २. सम्यग् ज्ञान-यथार्थ को जानना। ३. सम्यग् चारित्र-संयम करना। ४. सम्यग् तप-संचित कर्म-मल का शोधन करना। इस जगत् में मूल तत्त्व दो हैं-आत्मा (जीव) और अनात्मा (अजीव)। आत्मा की शरीर-बद्ध दशा का नाम जीव और उसकी शरीर-मुक्त दशा का नाम परमात्मा है। आत्मा से परमात्मा होने का साधन धर्म है। मुनि धर्म ___ समता धर्म है, विषमता अधर्म है। आन्तरिक क्षमता की दृष्टि से सब जीव समान हैं-न कोई छोटा है और न कोई बड़ा। विकास की दृष्टि से जीव छह प्रकार के होते हैं ० पृथ्वीकायिक-खनिज पदार्थों के जीव । 0 अप्कायिक-जल के जीव । ० तेजस्कायिक-अग्नि के जीव। ० वायुकायिक-हवा के जीव। ० वनस्पतिकायिक-हरियाली के जीव । ० त्रसकायिक-गतिशील जीव । १. प्रथम प्रवचन के विषय में दो परम्पराएं हैं। एक परम्परा के अनुसार भगवान् ने विपुलाचल पर प्रथम प्रचन किया। उस समय महाराज श्रेणिक और महारानी चेलणा वहां उपस्थित थे। दूसरी परम्परा के अनुसार भगवान् ने पहला प्रवचन केवलज्ञान प्राप्त होने की भूमि के स्थान पर ही किया। उस समय केवल देवगण ही उपस्थित थे। कोई उपस्थित नहीं था। इसलिए कोई व्रती या महाव्रती नहीं बना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003115
Book TitleBhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Principle
File Size5 MB
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