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________________ के साथ भोजन लेने का आग्रह किया । सब कुछ शुद्ध और उपयुक्त था । फिर भी भगवान् ने कुछ नहीं लिया। वे जैसे आए थे वैसे ही लौट गए। नन्दा का मन उदास हो गया। उसकी दासियों ने कहा- 'आप उदास क्यों होती हैं? क्या आपने सुना नहीं की भगवान् चार मास से भोजन नहीं ले रहे हैं? वे प्रतिदिन भोजन के लिए घर-घर में जाते हैं और भोजन बिना ही लौट जाते हैं।' यह सुन नन्दा की आतुरता बढ़ गई। अमात्य भोजन के लिए घर आया । उसने नन्दा को उदास देखा । उदासी का कारण पूछा। नन्दा ने भगवान् महावीर के घर आने और भोजन लिए बिना वापस चले जाने की बात बताई। अमात्य ने पूछा- ऐसा क्यों हुआ ?' साधना-काल / ३७ नन्दा बोली- 'क्या यह आज ही हुआ है?' 'तो क्या सदा ही ऐसा होता है?' अमात्य ने जिज्ञासा की । नन्दा ने व्यंग्य की भाषा में कहा- 'आप कौशाम्बी के अमात्य हैं । सारे राज्य का संचालन करते हैं । सब घटनाओं की जानकारी रखते हैं, फिर आपको इसका ही पता नहीं है कि भगवान् महावीर चार मास से भोजन नहीं ले रहे हैं । नन्दा की बात सुन अमात्य स्तब्ध रह गया । उसे अपने अज्ञान पर अनुताप हुआ। उसने गुप्तचरों को बुलाकर वस्तुस्थिति की जानकारी करने का निर्देश दिया। कौशाम्बी के राजा का नाम था शतानीक । मृगावती उसकी महारानी थी। वह महाराजा चेटक की पुत्री थी । उसकी एक प्रतिहारी थी विजया । वह किसी कार्यवश मंत्री के घर गई हुई थी । उसने नंदा के मुंह से सारी बात सुनी और महारानी तक पहुंचा दी। महारानी ने महाराज के सामने सारी स्थिति रखी। महाराज ने अमात्य को बुलाकर उस स्थिति की चर्चा की। इस प्रकार भगवान् की तपश्चर्या ने राजा और प्रजा सबके मन को आन्दोलित कर दिया। वे चार मास का उपवास पहले कई बार कर चुके हैं । किन्तु यह अपने ढंग का निराला ही है। इससे जनमानस जितना आन्दोलित हुआ उतना पहले किसी तप से नहीं हुआ । राजा और अमात्य ने भगवान् की तपस्या- पूर्ति के अनेक प्रयत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003115
Book TitleBhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Principle
File Size5 MB
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